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________________ २७७ भगवान् महावीर मुनि ने कहा-"जो दीक्षा ग्रहण करते हैं वे सारे जगत के स्वामी होते हैं ।" शालिभद्र ने कहा- “यदि ऐसा है तो मैं भी अपनी माता की आज्ञा ले कर दीक्षा लूंगा।" ऐसा कह वह घर गया। और माता को नमस्कार कर कहा- "हे माता ! आज श्री धर्मघोष मुनि के मुख से मैने संसार के सब दुखों से छुड़ा देने वाले धर्म को परिभाषा सुनी है । उसके कारण मुझे संसार से विरक्ति हो गई है । इसलिए तुम मुझे आज्ञा दो जिससे मैं व्रत लेकर अपनी आत्मा का कल्याण करूं ।" भद्रा ने कहा-वत्स ! तेरा यह कथन बिल्कुल उपयुक्त है। पर व्रत को निभाहना लोहे के. चने चबाने से भी अधिक कष्टप्रद है। उसमें भी तेरे समान सुकोमल और दिव्य भोगों से लालित पुरुष के लिए तो यह बहुत ही कठिन है। इसलिए यदि तेरा यही विचार है तो धीरे धीरे थोड़े थोड़े भोगों का त्याग कर अपने अभ्यास को बढ़ाले । पश्चात् तेरी इच्छा हो तो दीक्षा ग्रहण कर लेना ।” शालिभद्रने माता के इस कथन को स्वीकार किया और उसी दिन से वह एक एक शय्या और एक एक स्त्री का त्याग करने लगा। __ कुछ समय पश्चात् जब वीरप्रभु वैभारगिरि पर पधारे तब शालिभद्रने जाकर उनसे मुनि व्रत ग्रहण किया। उग्र तपश्चर्या करते करते शालिभद्र मुनि मनुष्य आयु के व्यतीत हा जाने पर मानवीय देह को छोड़ कर सर्वार्थ सिद्धि विमान में देवता हुए। राजा चण्डप्रद्योत को उसकी अङ्गारवती रानी से वासव. दत्ता नामक एक सर्व लक्षण युक्त पुत्री थी। चण्डप्रद्योत उस, कन्या का बड़ा आदर करता था। उसने उसे सर्व कलानिधान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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