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भगवान् महावो स्थित हुआ तब सिद्धार्थ राजा और त्रिशला देवी ने पुत्र का जातकर्मोत्सव किया । बारहवें दिन राजा ने अपने सब बन्धु-बान्धुओं
और जाति वालों को बुलाये । वे सब कई प्रकार के सुन्दर मङ्गलमय उपहार लेकर उपस्थित हुए । सिद्धार्थ राजा ने योग्य प्रतिदान के साथ उनका सत्कार किया। तत्पश्चात उसने उन सबों से "इस पुत्र के गर्भ में आने के दिन ही से हमारे घर में, नगर में
और राज्य में धन धान्यादिक की वृद्धि हो रही है अतः इसका नाम "वर्द्धमान" रक्खा जाय" । सब लोगों ने इसका अनुमोदन किया।
शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की तरह बालक “वर्द्धमान" क्रमशः बढ़ने लगे, बालकपन से ही उनकी प्रतिभा और उनकी शक्ति के कई लक्षण दृष्टि गोचर होने लगे । माता पिता को अपनी बाल्यक्रीड़ाओं से आनन्दित करते हुए "वर्द्धमान" ने क्रम से युवावस्था में पैर रक्खा । जन्म काल से लेकर अब तक भी अनेक चमत्कारिक घटनाओं से यद्यपि उनके माता पिता को उनका महान भविष्य दृष्टि गोचर होने लग गया था तथापि सुलभ स्नेह के वश होकर उनकी माता ने उनके विवाह का प्रबन्ध करना प्रारम्भ किया। इधर राजा समरवोर ने अपनी "यशोदा" नामक कन्या का विवाह "वर्द्धमान" कुमार से करने का प्रस्ताव सिद्धार्थ के पास भेजा । सिद्धार्थ ने उत्तर दिया मुझे और त्रिशला को कुमार का विवाह महोत्सव देखने की अत्यन्त अकांक्षा है । पर "वर्द्धमान" जन्म ही से संसार के प्रति कुछ उदासीन से रहते हैं । इस कारण हम तो उनके आगे ऐसा प्रस्ताव ले जाने का साहस नहीं कर सकते । हाँ आज उनके मित्रों द्वारा उनके आगे इस विषय की
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