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________________ भगवान् महावीर २०८ स्वर्ग में सौधर्म नामक इन्द्र का आसन कम्पायमान होता है। इस शकुन के द्वारा वह तीर्थंकर का जन्म जान तत्काल अपने कुटुम्ब-कवीले के साथ सुतिकागृह में जाता है । वहां वह तीर्थकर की माता को मोह निद्रा के वशीभूत कर तीर्थकर के स्थान पर नकली बालक को रख तीर्थंकर को उठालेता है । एक इन्द्र प्रभु पर छत्र लगाता है, दो उन पर दोनों और से चंवर करते हैं ओर एक वज्र उछालता हुआ उनके आगे चलता है । सब लोग मिल कर उन्हें सुमेरु पर्वत की पाण्डुक शिला पर ले जाते हैं। यहां पर एक हजार आठ कलशों से सब लोग मिल कर उनका अभिषेक करते हैं। उसके पश्चात् सब लोग मिल कर उनकी स्तुति करते हैं । तदनन्तर उन्हें वापिस उनकी माता के पास लाकर रख देते हैं। ओर उसकी मोह निद्रा को दूर कर एवं उस नकली बालक को मिटा कर वे लोग अपने स्थान पर वापस चल देते हैं। ये सब बातें प्रत्येक तीर्थंकर के जन्म समय में होती हैं ऐसा जैन पुराण मानते हैं । अत: यह कहने की आवश्यकता नहीं कि भंगवान, महावीर के जन्म समय में भी ये सब बातें हुई। दूसरे दिन प्रातःकाल राजा सिद्धार्थ ने पुत्र जन्म की खुशी में सब कैदियों को छोड़ दिया । तीसरे दिन माता पिता ने प्रसन्न होकर अपने पुत्र को सूर्य और चन्द्र के दर्शन करवाये । छठे दिन मधुर स्वर से सुन्दरी कुल शीला रमाणीयां मङ्गल गीतों को गाने लगीं । कुंकुम के अङ्गराग को धारण करने वाली सोलह शृंगारों से युक्त अनेक कुलवती खियों के साथ राजा और रानी दोनों ने रात्रि जागरण उत्सव किया । जब ग्यारहवां दिन उपShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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