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________________ १७५ भगवान् महावीर हुये एक महात्मा की अनुयायिनी हो गई हो और न कभी भविष्य में होगी ___कहा जाता है कि भगवान् का दिया हुआ-पहला उपदेश बिलकुल निरर्थक हुआ। उसका असर एक अन्त:करण पर भी न पड़ा। लेकिन महावीर को इससे बिल्कुल चिन्ता न हुई। उनका समुदाय भी संख्या में औरों से पीछे रहता था। पर उसकी भी उन्हें चिन्ता न थी। वे तो केवल अपनी शरण में आये हुए व्यक्तियों को प्रेम-पूर्वक ज्ञान का तत्व समझाते थे । यदि वह उपदेश को मान कर चलता और उनका शिष्य हो जाता तो उसकी उन्हें कोई खुशी न होती और यदि उसे न मानता तो रंज का भी कोई कारण न था। संसार के सन्मुख उन्होंने सुख के साधनों की एक लड़ी तैयार करके रक्खी थी। जिसकी इच्छा होती वह इससे फायदा उठाता। जिसकी इच्छा न होती वह उसे देख कर हो चल देता। महावीर को इससे किसी प्रकार का हर्ष और विषाद न होता था। इतिहास स्पष्ट रूप से इस बात को बतला रहा है कि "गौशाला" के समान एक सामान्य मत पवर्तक के अनुयायियों की संख्या महावीर के अनुयायियों से अधिक थी। इससे साबित होता है कि भगवान् ने कभी अपने अनुयायियों को बढ़ाने की कोशिश नहीं की । उनका यह अनुभव गत सिद्धान्त था कि अपने उपदेश को बलात्कार मनुष्य जाति के गले मढ़ने से कोई स्थायी लाभ नहीं हो सकता-उससे तो एक क्षणिक आवेश पैदा होता है। जो बहुत ही मामूली चोट से मिट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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