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________________ भगवान् महावीर १७४ हो गया। और जो गगनभेदी करुण-चित्कार भारत की पवित्र भूमि से निकल कर मनुष्यत्व के कलेजे को विदीर्ण करती थी, वह भी रुक गई । वर्णाश्रम धर्म का स्वांस मिट गया, जाति भेद की दुष्ट प्रथा का भी करीब करीब नाश हो गया । साम्यवाद की दुंदुभी बजने लगी क्रान्ति रूपी प्रचण्ड सूर्य का तेज अस्त हो गया और उसके स्थान पर समाज के अन्तर्गन शीतल चन्द्रिका से युक्त शांति-चन्द्र का उदय हुआ-भारतवर्ष के इतिहास में फिर से एक स्वर्ण युग के उपस्थित होने का अवसर आया । भगवान की उपदेश देने की शैली बड़ी ही उत्कृष्ट ढङ्ग की थी। वह शैली हम लोगों के लिये आदर्श रूप है। महावीर ने आजकल के उपदेशकों की तरह कभी दूसरों के छिद्र शोधने का वा दूसरों के आचार विचार पर चौ धारी तलवार चलाने का प्रयत्न नहीं किया । विश्व का उत्कृष्ट कल्याण करने के निमित्त ही उनके तीर्थ-कर पद का निर्माण हुआ था। लेकिन उन्होंने अपना निर्माण सिद्ध करने के निमित्त कभी किसी पर किसी प्रकार आ अनुचित प्रभाव डालने की कोशिश नहीं की और न कभी उन्होंने किसी को आचार विचार छोड़कर अपने दल में आने के लिये प्रलोभित ही किया। उनकी उपदेश पद्धति, शान्त, रुचिकर, दुश्मनों के दिलों में भी अपना असर पैदा करने वाली, मर्मस्पर्शी और सरल थी। सारी दुनियाँ मेरे झण्डे के नीचे चली आय, इस प्रकार की इच्छा उन्होंने स्वप्न में भी न की थी। वे जानते थे कि इस प्रकार की इच्छा करना भी मनुष्य हृदय का अज्ञान प्रकाश करनेवाली कमजोरी है। कभी ऐसा समय संसार में उपस्थित नहीं हुआ जिसमें दुनियाँ बिना किसी मत भेद के रखें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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