SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् महावीर १४. अनन्त तेज के सन्मुख प्रभु ने उन उपसर्गो को हीनप्रभा कर दिया। उन्होंने उनकी रंच मात्र भी परवाह न की। . एक बार भगवान महावीर "कुमार" नामक ग्राम के समीपवर्ती जंगल में गये, वहां नासिका पर दृष्टि रख कर वे कायोत्सर्ग में खड़े थे । इतने ही में एक गुवाल दो बैलों के साथ वहां निकला । उसे कोई जरूरी काम था, इसलिये वह बैलों को भगवान के समीप छोड़ कर चला गया । इधर बैल चरते चरते कुछ दूर चले गये तब वह गुवाला लौटा । उसने महावीर को बैलों के विषय में पूछा पर प्रभु तो ध्यान में खड़े थे, उन्होंने उसका कोई उत्तर न दिया। वह बैलों को ढूंढते ढूंढते दूसरी ओर निकल गया। दैवयोग से बैल फिरते फिरते पीछे महावीर के पास आकर खड़े हो गये। इधर ग्वाल भी ढूंढ़ता ढूंढ़ता फिर वहीं आ पहुँचा। वहां पर अपने बैलों को देखकर उसे यह सन्देह हुआ कि इस तपस्वी की नियत खराब मालूम होती है । इसने मेरे बैलों को छिपा दिये थे, ओर मौका पाकर यह इन्हें उड़ा ले जाने की फिक्र करता है। यह सोच कर वह भगवान को मारने लगा । यह घटना अवधिज्ञान के द्वारा इन्द्र को मालूम हुई और वह तत्काल ही वहां आया। उसने उस गुवाले को समझा बुझा कर बिदा किया और हाथ जोड़ भगवान से कहने लगा-हे भगवन् ? अभी बारह वर्षों तक आप पर इसी प्रकार उपसों की वर्षा होने वाली है। यदि आप आज्ञा करें तो मैं उनका निवारण करने के निमित्त सेवक की तरह आपके साथ रहूँ । भगवान ने शान्त भाव से उसे उत्तर दिया "तीर्थकर" कभी अपने आप को दूसरे की सहायता पर अवलम्बित नहीं रहते। वे अपनी ताकत से, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy