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________________ भगवान महावीर १२८ उन्हें इस बात का कुछ न कुछ अणुमात्र सन्देह रह ही जाता है कि प्रवृति मार्ग में भी सुख हो सकता है। क्योंकि उस मार्ग का उन्हें कच्चा चिट्ठा तो मालूम रहता ही नहीं। वे उस मार्ग की त्रुटियों को तो जानते ही नहीं सारे संसार को सुख की खोज में उधर ही गति करते हुए देख कर यदि उनके हृदय में रंचमात्र इस भावना का उदय भी हो जाय तो क्या आश्चर्य ! इसलिए प्रायः सभी धर्मों के अन्तर्गत प्रवृति-मार्ग या गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की आज्ञा दी है। जैन धर्मशास्त्रों में भी इस प्रवृति मार्ग का खूब ही विस्तृत वर्णन किया है, हमारे तीर्थकरों, चक्रवर्तियों, नारायणों आदि शलाका के महापुरुषों के वैभव का, उनके विलास का वर्णन करने में उन्होंने कमाल कर दिया है। और इन सुखों की प्राप्ति का कारण पूर्वजन्म कृत पुण्यों को बतलाया है। इसी से पता चलता है कि हमारे धर्मशास्त्रों में प्रवृति मार्ग को कितना अधिक महत्व दिया है। प्रवृति मार्ग में पूर्णता प्राप्त होना भी पूर्व जन्म के पुण्य का सूचक माना गया है । क्योंकि जब तक मनुष्य सांसारिक सुख भोग में अपूर्ण रह जाता है तब तक उन भोगों से उसकी विरक्ति नहीं हो सकती, क्योंकि जो भोग उसे प्राप्य हैं उन्हीं में उसे सुख की पूर्णता दिखलाई देती है, और उन्हीं के मोह में वह भटका करता है। उनके कारण वह दुनियां से निवृत नहीं हो सकता। पर जब उसे संसारसंभव सब विलासों और सुखों की प्राप्ति हो जाती है और फिर भी उसकी तृप्ति नहीं होती, तभी उसे संसार की ओर से निवृति हो जाती है और इसीलिये प्रवृतिमार्ग में पूर्णता का होना पूर्वजन्म के अनेक पुण्यों का फल माना गया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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