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________________ १२७ भगवान् महावीर इन क्रियाओं के मनुष्य जीवन के वास्तविक उदेश्य पर सफलता पूर्वक नहीं पहुँचा जा सकता। . हमारे प्राचीन शास्त्रकार दूरदर्शी थे। मनुष्य स्वभाव के अगाध पण्डित थे । वे जानते थे कि, बिना गृहस्थाश्रम का पालन किये सन्यस्ताश्रम का पालन करना महा कठिन है। प्रवृति और निवृति जीवन उत्थान के ये दो मार्ग हैं। प्रवृति से यद्यपि जीवन का विकास नहीं हो सकता तथापि जीवन के विकास के लिए उसकी आवश्यकता अनिवार्य है, बिना प्रवृति मार्ग के ज्ञान और अनुभव से निवृति मार्ग में पहुँचना अत्यन्त कठिन है। मनुष्य की गृहस्थाश्रम अवस्था इसी प्रवृति मार्ग का द्वार है। गृहस्थाश्रम में प्रवेश करके मनुष्य उन सब मोहनीय पदार्थों को पाता है, वह उसका अनुभव करता है, उनमें आनन्द की खोज करता है, करते करते जब वह थक जाता है, तृप्ति की खोज करते करते थक जाने पर भी जब उसे तृप्ति नहीं मिलती तब उसे प्रवृति मार्ग की अपूर्णता का ज्ञान होता है। वह उससे ऊपर उटता है, पूर्णता प्राप्त करने के लिए अन्त में उसे निवृति मार्ग में प्रवेश करना पड़ता है, और तभी वह अपने उद्देश्य में सफल भी होता है। मनुष्य की यह एक स्वाभाविक प्रवृति है कि जब तक वह किसी चीज़ का स्वयं अनुभव नहीं कर लेता, जब तक वह उसकी मिथ्यावादिता का स्वयं स्पर्श नहीं कर लेता तब तक उस वस्तु में उसका स्वाभाविकतया ही एक प्रकार का मोह रहता है। जो लोग प्रवृति मार्ग का बिना तर्जुवा किये ही निवृति मार्ग में प्रवेश कर जाते हैं । उन लोगों की भी प्रायः यही अवस्था होती हैShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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