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________________ १२५ भगवान् महावीर के कथन से दीक्षा सम्बन्धी उच्च भावनाओं को दो वर्ष के लिए मुल्तवी कर दी। ऐसी हालत में क्या माता पिता की इच्छा उनका विवाह कर देने की न हुई होगी? क्या तीस वर्ष की अवस्था तक उन्होंने अपने प्राणप्रिय कुमार को बिना सहधर्मिणी के रहने दिया होगा। जिस काल में बिना बहू का मुंह देखे सास की सद्गति ही नहीं बतलाई गई है। उस काल की सासुएँ और जिसमें भी महावीर के समान प्रतिभाशाली पुत्र की माता का बिना बहु के रहना कम से कम हमारी दृष्टि में तो बिलकुल अस्वाभाविक है, इसके अतिरिक्त यह भी प्रायः असम्भव ही मालूम होता है कि महावीर ने इस बात के लिए अपने माता पिता को दुखित किया हो, ? ये सब ऐसी शङ्काये हैं जिनका समाधान कठिन है। ऐसी हालत में यदि हम यह मान लें कि भगवान महावीर ने विवाह किया था तो कोई अनुचित न होगा।" उपरोक्त दिगम्बरी विद्वान का यह कथन कई अंशों में उचित मालूम होता है। यदि भगवान महावीर को मनुष्य की तरह मान कर इस बात कों हम मनोविज्ञान की कसोटी पर भी जाचें तो भी उपरोक्त बात ठीक ऊंचती है। एक बलवान, धैर्यवान, और बुद्धिवान युवक का तीस वर्ष तक कुमारावस्था में रहना साधारणतः प्रकृति के विरुद्ध है। इसमें सम्देह नहीं कि महावीर साधारण मनुष्य प्रकृति से बहुत ऊपर ( Supper human ) थे। पर इससे क्या वे मनुष्यत्व से बिल्कुल ही परे तो नहीं थे, इसके सिवाय विवाह करना कोई पाप थोड़े ही है। यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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