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________________ भगवान् महावीर १२० व्यायाम शाला में आते थे। वहाँ वे कई प्रकार के दण्ड बैठक, -मुग्दर उठाना आदि व्यायाम करते थे। उसके अनन्तर वे मल्ल-युद्ध करते थे इसमें उनको बहुत परिश्रम हो जाता था। इसके पश्चात शतपक तैल-जो सौ प्रकार के द्रव्यों से निकाला जाता था, और सहस्रपक्क तैल जो एक हजार द्रव्यों से निकाला जाता था-से मालिश करवाते थे, यह मालिश रस रुधिर धातुओं को प्रीति करनेवाला-दीपन करनेवाला, बल की .वृद्धि करनेवाला और सब इन्द्रियों को आल्हाद देने वाला होता था। व्यायाम के पश्चात् सिद्धार्थ स्नान करते थे। इस स्नान का वर्णन भी कल्पसूत्र में बड़े ही मनोहर ढङ्ग से किया गया है, इस प्रकार यदि हम सिद्धार्थ की दिनचर्या का अध्ययन करते हैं तो वह बहुत ही भव्य मालूम होती है। 'पिता के इन संस्कारों का प्रभाव महावीर के जीवन पर अवश्य पड़ा होगा, इन सब बातों से यह भी मालूम होता है कि, उस समय उनके आसपास का वायुमण्डल बहुत ही शुद्ध और पवित्र था। शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक उन्नति 'के सब साधन उनको प्राप्त थे। ऐसा मालूम होता है कि, भगवान महावीर की शारीरिक सम्पति तो बहुत ही अतुल होगी। कदाचित इसी कारण उनका नाम “वर्धमान" से महावीर पड़ गया हो। महावीर स्वामी की शिक्षा प्रबन्ध वगैरह के विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हमारे शात्रों में उन्हें जन्म से ही, मति, श्रुति, अवधि ज्ञान के धारक माने हैं। इसShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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