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________________ भगवान् महावीर ११८ काल, यौवन काल, और दीक्षाकाल का कोई भी प्रामाणिक इतिहास देखने को नहीं मिलता । देखने को केवल ऐसी ऐसी बातें मिलती हैं कि जिन पर आज कल का बुद्धिवादी जमाना बिल्कुल विश्वास नहीं कर सकता । और जिस बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता उसके आदर्श रूप में किस प्रकार परिणित किया जा सकता है। भगवान महावीर का बाल्यकाल । भगवान महावीर का बाल्यकाल किस प्रकार व्यतीत हुआ। यह जानने का हमारे पास कोई साधन नहीं है, हम इस बात को नहीं जानते कि, बालकपन में उनका क्रम विकास किस ढङ्ग से हुआ। उनकी बालकपन की चेष्टाएं किस प्रकार की थीं। असल में देखा जाय तो मनुष्य के भविष्य का प्रतिबिम्ब उसके बाल्य. जीवन पर पड़ता रहता है। मनुष्य संस्कारों का संग्रह बालकपन में ही करता है। भविष्य में उनका विकास मात्र होता है, इस लिये किसी भी व्यक्ति का जीवन चरित्र लिखने के पूर्व उसके बाल्यकाल को अध्ययन करना अत्यन्त आवश्यक होता है । पर भगवान महावीर के बाल्यकाल के विषय में हमारे ग्रन्थ कुछ भी प्रमाण भूत तत्त्व नहीं देते । वे केवल इतना ही कह कर चुप हैं कि, भगवान, मति, श्रुति, अवधि नामक तीन ज्ञानों को साथ ले कर उत्पन्न हुए थे। वे हमारे सामने केवल एक गढ़ी गढ़ाई प्रतिमा की तरह दिखलाई पड़ने लगते हैं । इसमें हमें यथार्थ सन्तोष नहीं होता। हम मनुष्य हैं, हम हमारे पूज्य नेता को मनुष्य रूप में देखना चाहते हैं। मानवीयता का जो महत्व है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034764
Book TitleBhagwan Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraraj Bhandari
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1925
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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