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________________ बुर की जीवनी ग्रहण करें, आत्म-निर्भरता पर दृढ़ रहें और निर्वाण की प्राप्ति के लिये धर्म का दीपक प्रदीप्त करें। जो लोग ऐसा करेंगे, वही "भिक्षुओं में अग्रगण्य होने का मान प्राप्त करेंगे। मेरे पीछे यदि कोई भिक्षु अथवा स्थविर तुम्हें किसी बात का उपदेश दे, तो मेरे सिद्धांतों से उस उपदेश का मिलान करके अनुकूल होने ही पर मानना; अन्यथा मत मानना ।" निर्वाण इधर उधर भ्रमण करते हुए जब बुद्ध भगवान् गया से कुशीनगर आ रहे थे, तब रास्ते में पावा ग्राम में चुंद नाम के एक लोहार ने उनको संघ समेत भोजनार्थ निमंत्रण दिया । चुंद ने उनके सामने भात और सूअर का मांस परोसा । बुद्ध ने भोजन का तिरस्कार करना उचित न समझ मांस तो आप ले लिया और दूसरी चीजें अपने शिष्यों को दे दी। भगवान् का शरीर पहले से अस्वस्थ था । सूअर का मांस खाने से उनके पेट में दर्द हुआ और उन्हें आँव तथा लहू के दस्त आने लगे । कुशीनगर पहुँचते पहुँचते वे बहुत कमजोर हो गये। वहाँ वे अपने शिष्यों के साथ एक उपवन में ठहरे । दो साल वृक्षों के नीचे बुद्ध की शय्या लगाई गई, जिसका सिरा उत्तर की तरफ़ था । बुद्ध उस पर दाहिनी करवट लेटे । अंतिम समय आने के पहले वे अपने प्रधान शिष्य आनंद को भविष्य में बौद्ध धर्म के प्रचार और उसके संघटन के विषय में उपदेश देते रहे। उन्होंने चार स्थान बतलाये जहाँ बौद्ध धर्म के अनुयायियों को तीर्थ यात्रा के लिये जाना चाहिए । वे चार स्थान ये हैं-(१) “लुंबिनो" उपवन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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