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बौद्ध कालीन भारत
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की। इसी बीच में देवदत्त एक तालाब में फंसकर मर गया । __ महात्मा बुद्ध के अविश्रांत परिश्रम का यह फल हुआ कि मल्ल, लिच्छवि, शाक्य आदि क्षत्रिय जातियों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया । एक बार अवध प्रांत के शासक विरूधक ने कई कारणों से शाक्यों पर भारी क्रोध करके उनका सर्वनाश कर डाला । अपना पैंतालीसवाँ चातुर्मास्य श्रावस्ती में व्यतीत करके भगवान् ने राजगृह जाते हुए मार्ग में कपिलवस्तु के ध्वंसावशेष देखे । मार्ग में भगवान् पाटलिग्राम भी पहुंचे, जहाँ उस समय एक किला बन रहा था । वहाँ उन्होंने भविष्यवाणी की-"यह पाटलिग्राम 'पाटलिपुत्र' (पटना) कहलावेगा। इसकी समृद्धि, सभ्यता और वाणिज्य खूब बढ़ेगा और यह सर्वश्रेष्ठ नगर होगा। पर अंत को अग्नि, जल और गृह-विच्छेद से इसका नाश होगा।"
वेश्या के यहाँ निमन्त्रण उस समय वैशाली में आम्रपाली नाम की एक वेश्या रहती थी, जिसने भगवान् को संघ समेत भोजन के लिये निमंत्रित किया । भगवान् ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। इस बात से लिच्छवि लोग कुछ अप्रसन्न हुए, किंतु भगवान् ने भक्त को न छोड़ा। थोड़े दिनों बाद भगवान् को बिल्वग्राम में अपने प्रिय शिष्य सारिपुत्र और मौद्गलायन के मरने का समाचार मिला। इसी वर्ष भगवान् के शरीर में कठिन पीड़ा हुई, जिससे उनके अमंगल के भय से सारा भिक्षु-वर्ग घबरा गया। उस समय अपने प्रिय शिष्य आनंद को संबोधित करके भगवान ने कहा."सब लोगों के लिये मेरी यह आज्ञा है कि वे धर्म ही का आश्रय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com