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________________ बुद्ध को जोवनी का अनुयायी हो गया। इसी बीच में बुद्ध ने “सारिपुत्र" और "मौद्गलायन" नामक भिक्षुओं को भी शिष्य बनाकर उन्हें अपने सब शिष्यों में प्रधानता दी। ___अब गौतम बुद्ध का यश उनकी जन्म-भूमि तक पहुँच गया था । अपने पुत्र का भारी यश सुनकर राजा शुद्धोदन ने कई दूतों को भेजकर उन्हें बुला भेजा। वे दो महीने तक पैदल चलकर संघ समेत कपिलवस्तु पहुँचे और उसी के निकट "न्यग्रोध" कानन में ठहरे। दूसरे दिन वे स्वयं नगर में भिक्षा माँगने के लिये निकले। इस समाचार से राज-परिवार में बड़ा कोलाहल मचा और राजा वहीं पधारकर बुद्ध से कहने लगे--वत्स ! इस प्रकार भिक्षा माँगकर मुझे क्यों लज्जित करते हो! क्या मैं संघ समेत तुम्हारा सत्कार नहीं कर सकता ? बुद्ध ने उत्तर दिया कि महाराज, यह तो मेरा कुल-धर्म है; क्योंकि अब मैं अपने को राजकुलोत्पन्न न मानकर बौद्ध कुल में जन्मा हुआ समझता हूँ। अनंतर महल में भगवान् का संघ समेत भोजन हुआ। वहीं बुद्ध ने राज-परिवार तथा सेवकों को उपदेश भी दिया। इस उपदेश में पूरे राज-परिवार के सम्मिलित होने पर भी भगवान् की रानी यशोधरा न सम्मिलित हुई। उसका भाव समझकर तथा पिता की आज्ञा लेकर सारिपुत्र और मौद्गलायन के साथ भगवान् स्वयं यशोधरा के पास गये । वह भगवान् को संन्यासी के वेश में देख, परम विह्वल हो, उनके पैरों पर गिर पड़ी और फूट फूटकर रोने लगी। भगवान ने उसको आश्वासन देकर अनेक उपदेश दिए । अनंतर भगवान् के छोटे भाई नंद ने भी युवराज होना स्वीकार न करके बुद्ध से दीक्षा ग्रहण की। भगवान् के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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