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बौर-कालीन भारत
और आश्चर्यजनक दृश्य दिखाने पड़े। वहाँ तपोवन का एक अग्न्यागार था, जिसमें अग्नि रक्खी रहती थी । उसमें एक भयंकर काला साँप रहता था । काश्यप तथा अन्य ब्राह्मण उस साँप के डर के मारे उस घर में न जाते थे। उन ब्राह्मणों को अपनी शक्ति का परिचय देने के लिये बुद्ध ने उस अग्न्यागार में रहने की आज्ञा माँगी। काश्यप ने यह समझकर कि बुद्ध की जान व्यर्थ जायगी, उन्हें उस आगार में रहने की आज्ञा न दी। अंत में बहुत कहने सुनने पर बुद्ध को उस गृह में रहने की आज्ञा मिली। बुद्ध उसके अंदर आसन जमाकर बैठ गये। बैठते ही उनके शरीर से ऐसी ज्योति निकली कि साँप डर गया और बुद्ध के वशीभूत होकर उनके भिक्षा-पात्र में छिपकर बैठ गया । ब्राह्मणों ने बुद्ध का यह आश्चर्य-जनक प्रकाश देखकर समझा कि मकान में आग लगी है। अतएव वे आग बुझाने के लिये घड़ों में पानी ले लेकर दौड़े। अंत में यह जानकर कि यह बुद्ध के शरीर से निकली हुई ज्योति है, वे बुद्ध के भक्त हो गये और काश्यप ने अपने शिष्यों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया । इस घटना से बुद्ध की ख्याति चारों ओर फैल गई।
जन्म-भूमि में बुद्ध का आगमन अब बुद्ध भगवान् अपने शिष्यों को साथ लेकर मगध की राजधानी राजगृह की ओर चले । बुद्ध के आने का समाचार सुनकर मगध का राजा बिंबिसार बहुत से ब्राह्मणों और वैश्यों को साथ लेकर उनसे मिलने के लिये आया । पश्चात् बुद्ध का उपदेश सुनकर राजा अपने असंख्य अनुचरों के साथ बौद्ध मत
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