SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४९ शिल्प कला की दशा कभी खड़े हुए मिलते हैं । बुद्ध की बैठी हुई मूर्तियाँ तीन मुद्राओं में पाई जाती हैं; यथा-"ध्यान मुद्रा", "भूमि-स्पर्श मुद्रा" और "धर्मचक्र मुद्रा" | ध्यान मुद्रा में बुद्ध समाधि में स्थित और गोद में एक हाथ पर दूसरा हाथ रक्खे हुए हैं। भूमि स्पर्श मुद्रा में वे दाहिने हाथ से भूमि को स्पर्श करके साक्षी देते हैं । धर्मचक्र मुद्रा में वे दोनों हाथों को छाती तक इस प्रकार उठाये रहते हैं, मानों वे उपदेश कर रहे हैं। बुद्ध की खड़ी मूर्ति प्रायः "अभय मुद्रा" में दिखलाई पड़ती है। इस मुद्रा में वे एक हाथ छाती तक उठाये हुए इस प्रकार दिखलाये गये हैं, मानों वे संसार को अभय-दान दे रहे हों। कभी कभी बुद्ध भगवान् के दोनों अथवा एक ओर बोधिसत्व की मूर्तियाँ भी मिलती हैं। बोधिसत्व की मूर्तियाँ बुद्ध से अलग भी मिलती हैं। बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्तियों में प्रधान भेद यह है कि बुद्ध संन्यासी के वेष में दिखलाई देते हैं; और बोधिसत्व सुन्दर वस्त्र तथा मुकुट आदि अलंकारों से भूषित राजा महाराजों के सदृश । बुद्ध भगवान् की मूर्तियों में दोनों कन्धे चादर से ढके रहते हैं; पर बोधिसत्त्व की मूर्तियों में एक कन्धा खुला रहता है। इन मूर्तियों में दाहिना हाथ "वरद मुद्रा" में रहता है और बाएँ हाथ में कमलामादि में से कोई चिह्न रहता है । बोधिसत्त्व एक दो नहीं वरन् अनेक हैं। प्रधान बोधिसत्त्व ये हैं-अवलोकितेश्वर, मंजुश्री, मारीचि, वनपाणि और मैत्रेय । अवलोकितेश्वर की मूर्तियों में दाहिना हाथ "वरद मुद्रा" में अर्थात् वर देता हुआ और बायाँ हाथ कमल ग्रहण किये हुए दिखलाया गया है। मंजुश्री दाहिने हाथ से तलचार उठाकर मानो अज्ञानान्धकार काट रहे हैं। मारीचि सात Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy