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________________ चौर-कालीन भारत ३२० था। चीन और तिब्बत के बौद्ध ग्रंथों में उसकी बहुत प्रशंसा है और उसकी तुलना अशोक से की गई है। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार में बहुत सहायता दी थी। उसके समय में बौद्ध धर्म की. चौथी महासभा हुई । इस सभा के सम्बन्ध में बौद्ध ग्रंथों में परस्पर विरोधी बातें पाई जाती हैं। तारानाथ कृत बौद्ध धर्म के इतिहास से पता लगता है कि अठारहो सम्प्रदायों के बीच जो झगड़ा हो रहा था, वह इस महासभा में तै हुआ । बौद्ध धर्म के अठारहो सम्प्रदाय मान्य हुए; विनयपिटक लिपि-बद्ध किया गया; और सूत्रपिटक तथा अभिधर्म-पिटक के जो भाग तब तक लिपि-बद्ध नहीं हुए थे, वे भी लिपि-बद्ध किये गये । एक दूसरे तिब्बतो ग्रन्थ से पता लगता है कि कनिष्क ने भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के पारस्परिक विरोध का अन्त करने के लिये अपने गुरु पार्श्व से एक बौद्ध महासभा करने का प्रस्ताव किया। पार्श्व ने यह प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया; और इसके अनुसार बौद्ध धर्म के विद्वानों की एक बड़ी सभा करने का प्रबन्ध किया । कनिष्क ने इसके लिये कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में एक बड़ा विहार बनवाया। इस महासभा में पाँच सौ विद्वान उपस्थित थे। इसके सभापति वसुमित्र चुने गये। इन विद्वानों ने समस्त बौद्ध ग्रन्थों को बड़े परिश्रम से अच्छी तरह देख भालकर सब सम्प्रदायों के मत के अनुसार सूत्र-पिटक, विनय-पिटक और अभिधर्म-पिटक पर संस्कृत भाषा के एक एक लाख श्लोकों में महाभाष्य रचे । ये महाभाष्य क्रम से "उपदेश", "विनय-विभाषा-शास्त्र" और "अमिधर्म-विभाषा-शास्त्र" कहलाते हैं। मालूम होता है कि इस महासभा में कुछ ऐसे सिद्धान्त निश्चित हुए थे, जो सब सम्प्रदायों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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