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________________ बौद्ध-कालीन भारत २५८ करके बैठे हुए हाथी-घोड़ों, या सिंहों की मूर्तियाँ रहती थीं। ये दोनों बातें अशोक के शिलास्तंभों और भरहूत, साँची, मथुरा तथा बुद्ध गया के स्तूपों के परिवेष्टनों में मिलती हैं । मालूम होता है कि जब अशोक के समय में पहले पहल काठ या लकड़ी के स्थान पर पत्थर की इमारतें और मूर्तियाँ बनाई जाने लगी, तब उन पर प्राचीन ईरान की मूर्तिकारी तथा स्थापत्य विद्या का बहुत कुछ प्रभाव पड़ा होगा । अशोक के सामने ईरान के शिलालेखों, शिलास्तंभों, इमारतों और मूर्तियों के उदाहरण थे। उन्हीं को देखकर उसने अपने शिलालेख, शिलास्तंभ और महल आदि बनवाये होंगे। प्रसिद्ध कला-कुशल हावेल साहेब का मत है कि अशोक के स्तंभ ईरान के स्तम्भों की नकल नहीं, बल्कि उन स्तम्भों की नकल हैं, जो प्राचीन वैदिक काल में यज्ञ-स्थानों के चारो ओर खड़े किये जाते थे । ये यज्ञ-स्तम्भ राष्ट्र के शिल्पकार बनाते थे। वैदिक काल से ही शिल्पकार लोग राष्ट्र या राज्य के सेवक गिने जाते थे और उनकी प्रतिष्ठा ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों से कम न थी। मौर्य काल में शिल्प कला की जो शैली प्रचलित थी, वह अवश्य प्राचीन वैदिक काल से चली आ रही थी । जो लोग यह कहते हैं कि मौर्य काल की शिल्प कला ईरान की शिल्प कला की नकल है, वे भ्रम में हैं। मौर्य काल की कारीगरी और प्राचीन ईरान की कारीगरी में जो समानता दिखलाई पड़ती है, उसका कारण यही है कि अति प्राचीन समय में अलग अलग होने के पहले आर्य और ईरानी बहुत दिनों तक एक साथ रह चुके थे; और जब दोनों अलग हुए, तब शिल्प कला की जो शैली प्राचीन समय से चली आ रही थी, वही दोनों में बहुत दिनों तक प्रच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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