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प्राचीन पोर साहित्य वाद विवाद का कोई उल्लेख नहीं है। इस प्रकार इन पिटकों से हमें गौतम बुद्ध के बाद की कुछ शताब्दियों की बातों का प्रामाणिक इतिहास मिलता है; क्योंकि तीनों पिटक बुद्ध के निर्वाण के बाद सौ या दो सौ वर्ष के अन्दर निश्चित औप क्रम-बद्ध हुए थे ।
ये तीनों पिटक "सुत्त-पिटक", "विनय-पिटक” और “अभिधम्म-पिटक” के नाम से प्रसिद्ध हैं । “सुत्त-पिटक' में जो बातें हैं, वे स्वयं गौतम बुद्ध की कही हुई मानी जाती हैं। इस पिटक के सब से प्राचीन भागों में उनके सिद्धान्त उन्हीं के शब्दों में कहे गये हैं। इसमें कहीं कहीं उनके किसी चेले की भी शिक्षा दी है;
और उसमें यह प्रकट करनेवाले भी कुछ वाक्य मिलते हैं कि कहाँ बुद्ध के वाक्य हैं और कहाँ उनके शिष्य के हैं। पर समस्त सुत्तपिटक में बुद्ध के सिद्धान्त और उनकी प्राज्ञाएँ स्वयं उन्हीं के शब्दों में कही हुई मानी जाती हैं।
"विनय-पिटक” में भिक्षुओं और भिक्षुनियों के आचरण सम्बन्धी नियम बहुत विस्तार के साथ दिये गये हैं। जब भिक्षुओं और भिक्षुनियों की संख्या बढ़ने लगी, तब “विहार" अर्थात् मठ में उनके उचित आचरण के लिये प्रायः सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों पर भी बड़े कड़े नियम बनाने की आवश्यकता हुई। अपना मत प्रकट करने के उपरान्त बुद्ध पचास वर्ष तक जीवित रहे; अतः इसमें सन्देह नहीं कि इनमें से बहुत से नियम उन्हीं के निश्चित किये हुए हैं । बहुत से नियम उनके निर्वाण के बाद के भी हैं, पर विनय-पिटक में वे सब उन्हीं के बनाये हुए कहे गये हैं।
"अभिधम्म-पिटक” में भिन्न भिन्न विषयों पर शास्त्रार्थ हैं; अर्थात् भिन्न भिन्न लोकों में जीवन की अवस्थाओं,शारीरिक गुणों, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com