SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३७ सांपतिक अवस्था पड़ा था। भारतीय जहाज कच्छ की खाड़ी की ओर से अरब, फिनीशिया और मिस्र भी जाया करते थे । काशी से भी गंगा के द्वारा बंगाल की खाड़ी में जहाज़ पहुँचते थे और वहाँ से लंका तथा बरमा जाते थे। राइज़ डेविड्स का कथन है कि ईसा के पाँच सौ वर्ष पहले यूनान में चावल, चन्दन और मोर हिंदुस्तानी नामों से विख्यात थे। मौर्य वंश के राजाओं के समय और विशेष कर सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समय में यहाँ जहाजों का काम बहुत अधिक होता था । जब यूनानी लोगों ने भारत पर चढ़ाई की थी, तब उन्होंने हमारे जहाजों और नावों से हो काम लिया था। यहीं के जहाजों तथा बड़ी बड़ी नावों द्वारा सिकन्दर ने सिन्धु और अन्य नदियाँ पार को थीं और वहाँ से वह फारस की खाड़ी होता हुआ बैबिलोन पहुँचा था। यूनानी इतिहासकारों ने लिखा है कि सिकंदर के इस भारतीय बेड़े में २००० जहाज़ थे, जिन पर ८००० सिपाही थे। यह बेड़ा सिन्धु नदी के संगम पर भारतीय कारीगरों ने भारत की ही लकड़ी तथा कील-काँटों से बनाया था। एरियन ने लिखा है कि मैंने स्वयं भारतवर्ष में जहाज बनाने के बड़े बड़े कारखाने देखे हैं। ___ चन्द्रगुप्त की राज्य-व्यवस्था में एक नाविक विभाग (Board of Admiralty) भी था, जिसमें लड़ाकू जहाजों का महकमा (Naval Departinent) भी सम्मिलित था। इस विभाग के द्वारा जहाजों का प्रबंध होता था। कौटिलीय अर्थशास्त्र (अधि०२, प्रक० ४५) में जहाजों के प्रबंध का, उन पर लगे हुए कर का और उसके वसूल करने का पूरा पूरा हाल दिया है। उसी में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy