________________
बौद्ध-कालीन भारत
२३६ रेगिस्तानों में लोग रात को सफर करते थे और नक्षत्रों के सहारे रास्ता ठीक रखते थे। लंका का नाम नहीं आया है। ताम्रपर्णी द्वीप का उल्लेख आया है, जिससे लंका का तात्पर्य समझ पड़ता है । नदियों पर पुल न होते थे। लोग नावों पर नदी पार करते थे।
कौटिलीय अर्थशास्त्र (अधि०७, प्रक० ११७) में भी वारिपथ (जल मार्ग) और स्थलपथ (स्थल मार्ग) का उल्लेख आया है। कौटिल्य ने जल मार्ग की अपेक्षा स्थल मार्ग को अच्छा कहा है। इसी तरह उनके मत से उत्तर की ओर जानेवाले मार्ग की अपेक्षा दक्षिण की ओर जानेवाला मार्ग अधिक अच्छा है । इससे मालूम होता है कि उन दिनों दक्षिण में अधिक व्यापार होता था। कौटिल्य ने व्यापारिक मार्ग (Trade route) को "वणिकपथ" कहा है। ____ समुद्री व्यापार-जातकों में जहाजों, समुद्र-यात्रा और भारतवासियों के अन्य देशों से संसर्ग के बारे में बहुत कुछ उल्लेख है। "बावेरु जातक' में लिखा है कि उस प्राचीन समय में भी भारतवर्ष और बावेरु (बैबिलोन) के बीच व्यापार होता था। हिंदू सौदागर भारत से बावेरु देश को मोर बेचने जाया करते थे। जातकों से यह भी प्रकट होता है कि ईसा के छः सौ वर्ष पूर्व गुजरात के सौदागर जहाजों के द्वारा व्यापार के लिये ईरान की खाड़ी तक जाते थे। जातकों में इसी प्रकार की और बहुत सी बातें मिलती हैं, पर "सुप्पारक जातक" में इस विषय की एक बात बहुत महत्व की है। उसमें एक इतने बड़े जहाज का जिक्र है, जिसमें सात सौ सौदागर, अपने नौकरों सहित, बैठे थे । उस जहाज का अध्यक्ष एक अंधा मल्लाह था । वह भरुकच्छ (भड़ौच) से रवाना हुआ था। उसे बड़े बड़े तूफानों का सामना करना
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com