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________________ बौद्ध-कालीन भारत के पास तथा नमक "लवणाध्यक्ष" के पास भेज दिया जाता था । यदि कोई गैर-सरकारी आदमी किसी खान का पता लगाता, तो उसे उस खान के लाभ का छठा हिस्सा, और यदि कोई सरकारी आदमी पता लगाता था, तो उसे बारहवाँ हिस्सा इनाम में मिलता था। सूत्र विभाग (बुनाई का महकमा)-इस महकमे के अफसर को “सूत्राध्यक्ष" कहथे थे * । वह योग्य व्यक्तियों को वस्त्र आदि बुनने के लिये नियुक्त करता था। विधवाएँ, लँगड़ी लूली स्त्रियाँ, संन्यासिनियाँ और देवदासियाँ सूत और ऊन कातने के काम में लगाई जाती थीं। महीन या मोटे सूत के अनुसार अलग अलग मजदूरी दी जाती थी। सूत जितना ही महीन होता था, उतनी ही अधिक मजदूरी भी होती थी। गरीब परदानशीन औरतों को घर बैठे सूत कातने का काम दिया जाता था। सूत्र विभाग की ओर से कई ऐसी स्त्रियाँ नौकर रहती थीं, जो पर्देवाली खियों के घरों में जाकर . उन्हें काम देती थीं। जो स्त्रियाँ सूत्रशाला (बुनाई के दप्तर) में स्वयं आकर अपना काता हुआ सूत देती थीं, उनकी इन्नत का बड़ा खयाल रक्खा जाता था। उस स्थान पर केवल इतना ही प्रकाश रक्खा जाता था कि सूत्राध्यक्ष कते हुए सूत की जाँच कर सके । यदि वह सूत्र-शाला में आनेवाली त्रियों की ओर देखता या उनसे किसी और विषय की बातचीत करता था, या उन खियों को मजदूरी देने में विलम्ब करता था, तो उसे कड़ा दण्ड मिलता था । वेतन पाकर भी जो स्त्री काम न करती थी, वह भी दण्ड की भागिनी होती थी। ' कौटिलीय अर्थशास्त्र: अपि० २. अध्या० २३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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