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ख-कालीन भारत
१६२ एक जिले के अफसर या कलेक्टर होते थे और श्रोहदे में रज्जुकों से नीचे थे। अर्थशास्त्र में “प्रदेष्ट" शब्द कई बार आया है, जिसका अर्थ वही है,जो "प्रादेशिक" का है। इससे पता लगता है कि “प्रदेष्ट्र" एक प्रकार के ऐसे राजकर्मचारी थे, जिनका काम राजकर वसूल करना और प्रजा की रक्षा करना था। “युक्त" और "उपयुक्त” कदाचित् एक प्रकार के छोटे अफसर थे, जिनका काम हिसाब किताब रखना और राज-कर वसूल करना था। ये आजकल के क्लर्कों और छोटे छोटे पुलिस अफसरों का भी काम करते थे। इन अफसरों को लिखने पढ़ने के काम में सहायता देने के लिये बहुत से "लेखक" भी रहते थे। अर्थशास्त्र और अशोक के लेखों से पता चलता है कि मौर्य साम्राज्य की शासनप्रणाली बहुत ही सुव्यवस्थित और ऊँचे ढंग की थी। सीमा-प्रान्तों की जंगली जातियाँ अपने अपने सरदारों द्वारा शासित होती थीं, परन्तु उन पर सम्राट का निरीक्षण रहता था * । साम्राज्य के बहुत से भागों में स्वतंत्र राजे महाराजे भी शासन करते थे, जो अपने आपको नाम मात्र के लिये मौर्य साम्राज्य के अधीन मानते थे । अशोक के जमाने में राजा तुषास्फ इसी प्रकार का राजा था।
दूरस्थित राजकर्मचारियों की कार्रवाई की सूचना देने और रत्ती रत्ती समाचार सम्राट् को भेजने के लिये “प्रतिवेदक"
• सीमा प्रान्त की जंगली जातियों का उल्लेख अशोक के "दो कलिंग शिलालेख" में आया है ।
देखिये रुद्रदामन् का गिरनारवाला शिलालेख (Epigraphia Indica, VIII. 36.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com