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मौर्य शासन परति
प्रान्तीय शासन विभाग दूर स्थित प्रान्तों का शासन राज-प्रतिनिधियों के द्वारा होता था । ये राज-प्रतिनिधि प्रायः राजघराने के लोग हुआ करते थे। उनके अधीन अनेक कर्मचारी होते थे। "अर्थशास्त्र" के अनुसार प्रत्येक राज्य चार मुख्य प्रान्तों में विभक्त होना चाहिए और प्रत्येक प्रान्त एक एक राजकुमार या "स्थानिक" नामक शासक के अधीन होना चाहिए। इस बात का पता निश्चित रूप से नहीं लगता कि चन्द्रगुप्त मौर्य का विस्तृत साम्राज्य कितने प्रान्तों में बँटा था। पर अशोक के लेखों से पता लगता है कि उसका साम्राज्य चार भिन्न भिन्न प्रान्तों में विभक्त था। अशोक के शिलालेखों में तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसली और सुवर्णगिरि नामक
चार प्रान्तीय राजधानियों के नाम मिलते हैं * । तक्षशिला पश्चि..मोत्तर प्रान्त की, उज्जयिनी मध्य भारत की, तोसली कलिंग प्रान्त
की और सुवर्णगिरि दक्षिण प्रान्त की राजधानी थी। कहा जाता है कि अशोक अपने पिता के जीवन-काल में तक्षशिला और उज्जैन दोनों जगहों का प्रान्तिक शासक रह चुका था । राज-प्रतिनिधि या राजकुमार के बाद "रज्जुकों" का ओहदा था, जो कदाचित् आजकल के कमिश्नरों के समान थे। उनके नीचे "प्रादेशिक", "युक्त", "उपयुक्त" आदि अनेक कर्मचारी होते थे, जो राज्य का काम नियमपूर्वक चलाते थे । "प्रादेशिक" कदाचित्
* तक्षशिला. उज्जयिनी और तोसली का उल्लेख "दो कलिंग शिलालेख" में तथा सुवर्णगिरि का उल्लेख ब्रह्मगिरि के “प्रथम लघु शिलालेख" में आया है।
+ देखिये अशोक का "तृतीय शिलालेख" और "चतुर्थ स्तंभलेख" तथा अर्थशास्त्र (अधि० २, अध्याय १ ) और मनुस्मृति (अध्याय ८, मो० ३४) । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com