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बौद्ध-कालीन भारत
१५४ प्रजातन्त्र राज्यों की शक्ति उनकी एकता में है; ज्योंही उनमें फूट का बीज पड़ा, कि वे फिर स्थिर नहीं रह सकते। इसलिये उसने उन राज्यों में धीरे धीरे फूट का बीज बोना शुरू किया। इसी उद्देश्य से उसने उन राज्यों में बहुत से गुप्तचर भेजे थे। वे गुप्तचर जाकर भिन्न भिन्न वेषों में उन लोगों में रहते थे और उनमें फूट पैदा करने की कोशिश करते थे। वेश्याएँ भी इस काम में लगाई जाती थीं। जब इस तरह से उन लोगों में फूट पैदा हो जाती थी, तब चाणक्य को अपनी कुटिल नीति काम में लाने का मौका मिलता था। कौटिल्य ने अपना यह उद्देश्य पूरा करने के लिये इसी तरह के बहुत से उपाय किये जिसमें "संघेश्वेवमेकराजो वर्तेत" अर्थात् "चन्द्रगुप्त मौर्य समस्त संघों या प्रजातन्त्र राज्यों का एकछत्र सम्राट् हो जाय ।” उस का यह उद्देश्य बहुत कुछ सफल भी हो गया; क्योंकि मौर्य काल में इन प्रबल और स्वाधीन प्रजातन्त्र राज्यों के अस्तित्व का कोई दृढ़ प्रमाण नहीं मिलता । संभवतः ये सब राज्य मौर्य सम्राट के महान् साम्राज्य में मिला लिये गये
और उनका स्वाधीन अस्तित्व जाता रहा । प्रजातन्त्र राज्यों को तोड़ने के लिये जोजो उपाय किये जाते थे, वे सब कौटिलीय अर्थशास्त्र (अधि० ११, अध्याय १) में विस्तार-पूर्वक दिये हुए हैं।
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