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________________ १२५ राजनीतिक इतिहास बाद ढाई वर्ष से अधिक समय तक केवल उपासक था; पर शिलालेख खुदवाने के एक साल या उससे कुछ अधिक पहले वह संघ में सम्मिलित होकर बौद्ध भिक्षु हो गया था और तन, मन, धन, से बौद्ध धर्म का प्रचार करने लगा था। बौद्ध स्थानों में अशोक की यात्रा-लगभग चौबीस वर्षों तक सम्राट् रहने के बाद उसने ई० पू० २४९ में वौद्धों के पवित्र स्थानों की यात्रा के लिये प्रस्थान किया। अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से रवाना होकर वह नेपाल जानेवाली सड़क से उत्तर की ओर गया; और आजकल के मुजफ्फरपुर तथा चंपारन जिलों से होता हुआ हिमालय पहाड़ की तराई में पहुँचा। वहाँ से कदाचित् वह पश्चिम की ओर मुड़ा और उस प्रसिद्ध "लुंबिनी" नामक उपवन में आया, जहाँ बुद्ध भगवान् पैदा हुए थे। वहाँ उसके गुरु उपगुप्त ने उससे कहा-“यहीं भगवान का जन्म हुआ था।" अशोक ने अपनी इस स्थान की यात्रा के स्मारक में एक स्तंभ, जिस पर ये शब्द खुदे हुए हैं और जो अब तक सुरक्षित है, खड़ा किया । इसके उपरान्त वह अपने गुरु के साथ कपिलवस्तु आया, जहाँ बुद्ध भगवान की बाल्यावस्था बीती थी । वहाँ से वह बनारस के पास सारनाथ में आया, जहाँ बुद्ध भगवान् ने अपने धर्म का पहले पहल उपदेश किया था। वहाँ से वह श्रावस्ती गया, जहाँ बहुत वर्षों तक रहा। श्रावस्ती से चलकर उसने गया के बोधि वृक्ष के दर्शन किये, जिसके नीचे बैठकर बुद्ध भगवान् ने ज्ञान का प्रकाश प्राप्त किया था। गया से वह कुशीनगर आया, जहाँ बुद्ध भगवान् का निर्वाण हुआ था। इन सब पवित्र स्थानों में अशोक ने बहुत सा धन दान किया और बहुत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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