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________________ बौर-कालीन भारत १२४ की ओर से यह आज्ञा थी कि वे प्रजा के साथ पितृवत् व्यवहार करें और कलिंग देश की जंगली जातियों पर कोई अत्याचार न होने दें । पर वहाँ के राज्याधिकारी इस आज्ञा का प्रायः उल्लंघन किया करते थे, जिससे सम्राट् को अपने कलिंग लेख के द्वारा उन्हें यह सूचित करना पड़ा था-"मेरी आज्ञा पूरी करने से तुम स्वर्ग पाओगे और मेरे प्रति अपना ऋण भी चुकाओगे।" अशोक का धर्म-परिवर्तन-कलिंग युद्ध में एक लाख आदमी मारे गये और डेढ़ लाख आदमी कैद किये गये । इनके सिवा इससे कई गुने आदमी अकाल, महामारी तथा उन सब विपत्तियों के शिकार हुए, जो युद्ध के बाद लोगों पर पड़ती हैं। इन सब विपत्तियों को देखकर और यह समझकर कि मेरे ही सबब से ये सब विपत्तियाँ हुई हैं, अशोक को बड़ा खेद और पश्चात्ताप हुआ। इसके बाद उसने पक्का निश्चय किया कि अब मैं कभी युद्ध में प्रवृत्त न होऊँगा और न कभी मनुष्यों पर अत्याचार करूँगा । कलिंग-विजय के चार वर्ष बाद उसने अपने त्रयोदश शिलालेख में लिखा था-"जितने मनुष्य कलिंग-युद्ध में घायल हुए, मरे या कैद किये गये, उनके १००वेंया १०००वें हिस्से का नाश भी अब महाराज अशोक के लिये बड़े दुःख का कारण होगा।" अपने इस सिद्धान्त के अनुसार फिर उसने अपने शेष जीवन में कभी युद्ध नहीं किया। इसी समय के लगभग वह बौद्ध धर्म का अनुयायी हुा । तभी से उसने अपनी शक्ति तथा अधिकार के द्वारा “धम" या धर्म का प्रचार करना अपने जीवन का उद्देश्य बनाया । अशोक के प्रथम गौण शिलालेख और चतुर्दश. शिलालेखों से पता लगता है कि अशोक बौद्ध धर्म में आने के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034762
Book TitleBauddhkalin Bharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJanardan Bhatt
PublisherSahitya Ratnamala Karyalay
Publication Year1926
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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