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संघ का इतिहास
अन्तेवासी अपना वस्त्र इस तरह पहनकर कि एक कन्धा सुला रहे, उपाध्याय के पास आता था; और उपाध्याय के चरणों में प्रणाम करके पास ही उकडू होकर बैठ जाता था। तब वह हाथ जोड़कर तीन बार कहता था-"भगवन् , मुझे अपना अन्तेवासी बनाइए।" यदि उपाध्याय "हाँ" कह देता था, तो यह समझा जाता था कि उसकी प्रार्थना स्वीकृत की गई। इसके बाद भिक्षुओं की एक परिषद् या सभा इस बात पर विचार करने के लिये बैठती थी कि यह मनुष्य संघ में भर्ती किया जाय या नहीं । भिक्षुओं की परिषद् या सभा उससे कई प्रश्न करती थी;
और जब वह उन प्रश्नों के उत्तर देने में पूरा उतरता था, तब भर्ती होने के योग्य समझा जाता था। तब संघ का कोई एक भिक्षु कम से कम दस भिक्षुओं की परिषद् या सभा के सामने
आकर यह सूचित करता था-"संघ के सब लोग सुनें कि अमुक व्यक्ति अमुक उपाध्याय से उपसंपदा ग्रहण करना चाहता है.। यदि संघ उसे लेने को तैयार हो और आज्ञा दे, तो वह उपस्थित किया जाय ।" आज्ञा मिलने पर वह व्यक्ति परिषद् के सामने
आता था और भिक्षुओं के चरण छूकर उकडूं बैठ जाता था। इसके बाद वह हाथ जोड़कर तीन बार कहता था-"मैं संघ से उपसंपदा के लिये प्रार्थना करता हूँ। कृपाकर संघ इस पापपूर्ण संसार से मेरा उद्धार करे।"
तब एक योग्य और विद्वान् भिक्षु यह "बत्ति' (ज्ञप्ति या प्रस्ताव ) करता था-"मैं संघ को सूचित करता हूँ कि अमुक नाम का यह व्यक्ति अमुक नाम के उपाध्याय से उपसंपदा ग्रहण करना चाहता है । यदि संघ पसन्द करे, तो मैं इस व्यक्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com