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________________ ( ५० ) का स्तर गिर जाय उसे धर्म नहीं कहा जा सकता। चाहे वह धर्म के नामपर प्रचलित हो या जातीय रिवाजके नामपर। ऐसी प्रथाको रोकना धामिक स्वतन्त्रतामें हस्तक्षेप नहीं है। यह तो धार्मिक पवित्रताकी रक्षा करना है। धार्मिक पवित्रताको रक्षाके लिए तथा समाज एवं देशको हानिसे बचाने के लिए बुरी प्रथाको रोकना धारा सभाका कर्तव्य होता है। यह उसके क्षेत्रसे बाहर नहीं है | बंगालमें सती प्रथाकी रोक और अन्यत्र बाल-वृद्ध-विवाह-निषेधक कानून इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। (५) यह प्रस्ताव संसारकी उन्नतिमें बड़ा भारी बाधक होगा। समस्त धर्मोके सर्वश्रेष्ठ गुरु वे ही हो गए हैं जिन्होंने इस अनित्य एवं अमार संसारको अपने बाल्यकालमें ही त्याग दिया था न कि बृद्धावस्थामें । जगद्विख्यात धर्मगुरु उन्हीं लोगोंमेंसे हुए हैं जिन्होंने बाल्यकालमें संन्यास ग्रहण किया था क्योंकि उस समय मस्तिष्क बड़ा ही स्वच्छ, सरल, प्रभाव जमाने योग्य और समस्त सांसारिक जीवनकी क्लुपतासे स्वतन्त्र रहता है। धर्मको सबसे अधिक आशा उन्हींसे रहती है जो इस जीवनके पापों एवं कुकर्मोसे दग्ध नहीं किए गए हैं। सांसारिक उन्नतिके लिये यदि बाल्यकालसे सांसारिक अर्थकरी विद्याध्ययन आवश्यक है तो पारलौकिक उन्नतिके लिए पवित्र और त्यागी आत्मा यदि बाल्यकालमें ही लालायित हो तो समें रुकावट डालना अन्याय है। . . उत्तर-यह कहना बिल्कुल गलत है कि सर्वश्रेष्ठ धर्मगुरुषोंने बाल्यकाकों ही दीक्षा ली यो । जैनियोंके चौबीस जीरोमेंसे एकने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034760
Book TitleBaldiksha Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndrachandra Shastri
PublisherChampalal Banthiya
Publication Year1944
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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