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(३) उस व्याख्यान मण्डपमें हिंसकसे हिंसक पशु-पक्षी भी अपनी
क्रूरताको तजकर, आत्म-कल्याणके हेतु शान्ततापूर्वक विराजमान थे।
(४) उस मण्डपमें जो-जो प्राणिमात्र आकर बैठे थे उन सभीके
हृदयमें क्षमा, शांति, करुणा और समताके भाव परिपूर्ण सुशोभित थे।
(५) उस सभामण्डपमें यद्यपि सब ही प्रकारके प्राणी थे तिसपर
भी भगवानकी दिव्य आत्माका तेज सर्वत्र इस प्रकार छाया हुआ था कि चहुं ओर शांति ही शांति विराज रही थी।
(६) प्रभुके उपदेशकी भाषा उस समयकी लोकभापा अर्द्ध मागधी
थी । परन्तु प्रभुके आत्मतेजके प्रभावसे वहां बैठे हुए सब ही प्राणी अपनी-अपनी भाषामें प्रभुके उपदेश द्वारा अदृश्य आनन्दका अनुभव कर रहे थे।
(७) उस व्य ख्यान मण्डपकी रचना इतनी विचित्र थी कि उसके
अन्दर किसी भी स्थानपर बैठा हुअा प्राणी प्रभुके प्रसन्न मुख मंडलको बिना किसी कठिनाईके देख सकता था।
ऐसे दिव्य अलौकिक समवरण की रचनाके पश्चात् तीयोंको नमस्कार कर, अपने केवल ज्ञान द्वारा जगतको शांति देनेवाला, सत्व सदेश पहुंचाने हेतु प्रभु महावीर उच्च अन्तरिक्ष रत्नजड़ित सिंहासनपर विर जमान हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com