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सुदी १० के दिन विजय नामक शुभ मुहूर्तमें सर्व लोकालोकके सर्वांग द्रव्य, क्षेत्र काल और भावको जाननेवाला कैवल्यज्ञान प्राप्त किया । भगवानको यह सर्वज्ञता प्राप्त होते ही संसार भरमें आनन्द छा गया; देवी देवता और इन्द्रादिने महामहोत्सव मनाना आरम्भ कर दिया । पुष्पवृष्टि होने लगी और धार्मिक विश्रंखलता की भट्टी में शांतिका संचार होने लगा।
भगवान महावीरका समवसरण
केवल ज्ञान उत्पन्न होनेके पश्चात् वैसाख सुदी इग्यारसको भगवान महावीर अपापा नगरीके महासेन उद्यानमें पधारे। वहां इन्द्र महाराजके आदेशानुसार देवताओंने चांदी, सोना और रत्नमय तीन गढ, बारह दरवाजोंसे युक्त; उत्कृष्ट सिंहासन और अशोकादि वृक्षोंसे पूरित दिव्य समवरणकी रचना की । इस समवरण अर्थात व्याख्यान मण्डपकी अनुपम शोभाका वर्णन तथा उसके प्रभावका उल्लेख शास्त्रोंमें बहुत ही विस्तारपूर्वक पाया जाता है। उनमेंसे कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं कि
(१) उस समवरणमें सब ही जाति और वर्णांके मनुष्य भेद
भावोंको छोड़कर एक साथ ही उपदेश सुननेको आतुर हो हो रहे थे।
(२) प्रभुके आत्मज्ञानका अलौकिक प्रकाश केवल मनुष्य मात्र
तक सीमित न था, वरन् पशुपक्षियों एवं प्राणीमात्रको पार
लौकिक सुखका अनुभव करानेवाला था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com