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________________ को बारम्बार सराहने लगी । जब गौतम स्वामी वापस जाने लगे तो राजकुमारने उनके ठहरनेका पता पूछा । गौतम स्वामी बोले 'नगरके बाहर जहां मेरे धर्म गुरू भगवान महावीर ठहरे हुए हैं उन्हींके साथ मैं भी हूं।' तब तो राजकुमारने भी प्रभुके दर्शन करनेकी इच्छा प्रकट की और गौतम स्वामीके साथ चल पड़े। भगचानके पास पहुंचकर राजकुमारने बड़े प्रेम और भक्तिपूर्वक प्रभु की वंदना की और कुछ धर्म उपदेश सुनने के लिए वे उनके सम्मुख बैठ गये। प्रभुकी दिव्य बाणीका उनके ऊपर इतना प्रभाव पड़ा कि उनका मन वैराग्यसे भर गया । वे दीक्षावत धारण करने के लिए माता पिताकी आज्ञा लेनेको राजमहल में आये । माता-पिता और पुत्रके बीच बहुत देरतक वार्तालाप होने पर विवश हो राजा रानी ने पुत्रको दीक्षित होने की आज्ञा दे दी। एवन्तकुमार आज्ञा लेकर शीघ्रातिशीघ्र भगवान महावीरकी शरण में आये । प्रभुने उन्हें पात्र जानकर दीक्षित कर लिया। एक दिन नवदीक्षित एवन्तकुमार शौचादिके लिए बाहर गये हुए थे। रास्तेमें बहुत बर्षा हुई और पानीकी धारें बह चली। वहां मुनिने मिट्टीकी एक पार बांधी । पारके पीछे बहुत पानी जमा हो गया। उसी गंदले पानीमें मुनि एवन्तकुमार अपना पात्र तिराने लगे। बाल मुनिकी यह क्रिया अन्य मुनियोंको बहुत बुरी लगी ऐसी बाल दीक्षाके कुपरिणामोंका प्रभुके सन्मुख वर्णन कर वे भगचानपर आक्षेप करने लगे। फिर सर्वज्ञ प्रभुने उन्हें बहुत ही शांत भावसे समझाया । वे बोले कि 'समय पालनमें और आत्मकल्याण करनेमें वयका आधार नहीं लिया जा सकता ।' बाल मुनि को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034732
Book TitleAntim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Vaidmutha
PublisherGulabchand Vaidmutha
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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