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राग द्वेष रहित होकर जो कुछ मिलता उसीमें संतोष मानते हुए अपने कर्मोंकी निर्जरा करते रहते थे। इस प्रकार सन्तोष, क्षमा, अहिंसा, अमान और अक्रोधादि सत्भावनासे युक्त छै माह की तपस्या कर अर्जुन मुनि सत्संग द्वारा भव सागर पार कर गये ।
पश्चात् इसी राजगृहमें कासव, वीर, और मेंघ नामक व्यक्ति भगवानकी शरण में आये और दीक्षा गृहणकरली । तदनन्तर काकन्दी निवासी क्षेम और धतिधर, साकेत ग्रामके कैलाश और हरिचन्दन, श्रावस्तिके श्रमणभद्र और सुप्रतिष्ट तथा सुदर्शन आदि गाथापतियोंने भगवानसे क्रमशः दीक्षा धारण की, और जप तप करके अन्तमें इन सवहीने मुक्ति मार्ग सम्पादन कर लिया।
एवन्तकुमार
पोलासपुरके राजा विक्रमका पुत्र, एवन्तकुमार, एक समय कुछ लड़कोंके साथ खेल रहा था। उस समय उस नगरी में पधारे हुए भगवान महावीर के साथ गौतम स्वामी भी थे। गौतमस्वामी अपने बेले के पारण के हेतु भगवान की आज्ञा लेकर अहारके लिए बस्तीमें पधारे । खेलते हुए बालक एवन्तकुमारने मुनिको इधर-उधर जाता देख उनसे पूछा कि 'आप कौन हैं ? इधर उधर क्यों फिर रहे हैं ? गौतम स्वामीने उत्तर दिया 'हम निर्ग्रन्थ साधु हैं और अनैमित्तिक अहार पानीकी खोज में घूम रहे हैं।' यह सुनकर राजकुमारने गौतम स्वामीकी अंगुली पकड़कर अपने राजमहल में ले आया और अनौमत्तिक अहार पानी उन्हें बहरा दिया। इसपर राजकुमारकी माता बहुत प्रसन्न हुई और अपने तथा राजाके भाग्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com