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________________ ११४ ओर संकेत कर प्रभुने कहा-'मुनियों ! अपने पात्रको इस गंदले पानीमें तिरानेका बालमुनिका यही उद्देश्य था कि वे अपनी आत्मा को भी इस गंदले संसार-सागरसे कठोर प्रयत्न करके तिराकर पार ले जावेंगे।' यह सुनकर अन्य मुनि तो अपना सा मुंह लेकर रह गये; और वालमुनिने प्रभुकी उस वाणीको अपनी क्रियामें उतारने का निश्चय कर लिया तथा उसमें अपनी पूर्ण शक्ति लगा कर पारगामी हो गये। शालिभद्र और धनामुनि वाराणसी के उस समयके राजा अलखको दीक्षा देते हुए तथा अपने सपोतदेश से भव्यजीवों को प्रतिबोधित करते हुए एक समय प्रभु महावीर पुनः राजगृहमें पधारे । इस समय उसी नगरमें एक कोट्याधीश शालिभद्र नामक सेठ रहता था। भगवान की शरणमें आकर अपने राजसी वैभवको ठुकराकर उसने दीक्षा ग्रहण . की। ये शालिभद्रजी इतनी बड़ी सम्पतिके स्वामी कैसे बने, उसका एक दम त्याग उन्होंने कैसे कर दिया, उनकी पूर्व करणो कैसी थी इत्यादि बातोंका संक्षिप्त वर्णन शास्त्रानुसार इसप्रकार है। राजगृहके समीप किसी समय शालि नाम की एक छोटी-सी बस्ती थी। उसमें धन्या नाम की एक गरीव स्त्री रहती थी। जब यह स्त्री उस गांवमें आकर बसी थी उस समय उसका केवल एक छोटा-सा पुत्रका ही उसकी सम्पतिरूप था । उसके पुत्र नाम संगम था । जब संगम थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने गांवक ढोरों को चराने का काम लिया । आजीविका कोई दूसरा चारा न होनेके कारण धन्या को यही कमाई अंधेका लकड़ी के समान सहारा हुई। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034732
Book TitleAntim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Vaidmutha
PublisherGulabchand Vaidmutha
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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