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परिशिष्ट ४ । सनखतरा निवासी कसाईयोंकी ओरसे मानपत्र। श्रद्धाके फूल पंन्यास जी महात्मा सोहनविजय
महाराज के चरणों में ।* गुरुजी महाराज ! आपने एक महीने से अधिक हमारे पास रहकर जो जो शिक्षायें हमें दी हैं और जो अच्छे सिद्धांत हमें सिखाये हैं उनका वर्णन करने से वृथा देर होगी क्योंकि इससे पहले हमारे ही मुसलमान भाई आपकी सेवा में मान पत्र द्वारा उन शिक्षाओं और सिद्धांतो का वर्णन करचुके हैं । परन्तु हमारे हृदयोंको आपकी ओर बचने वाला चुम्बक आपका उपदेश है जिसका सार जैसे शेख सादीने कहा है-यह है कि परमात्माने मनुष्यों के अंग इस लिये बनाये हैं कि दुःख के समय एक दूसरे की सहायता करें, जब एक अंग में दरद होता है तो दूसरे भी किसी अंग को चैन नहीं पड़ता।
गुरुजी महाराज । यही शिक्षा हमारे सच्चे प्रवर्तक मुहम्मद साहिब की है । इमें हस बात की बड़ी खुशी है कि इस अंधकार के समय में भी हमारे रसूल और आपकी शिक्षा एक ही है । और यही हमारे सच्चे दिलीप्रेम और मिलाप का चिन्ह है । स्वामीजी महाराज ! आपका प्यार
* मूल उर्दूसे अनुवादित । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com