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( १६८ ) कशमीरी, लालदीन, दादअराई, ताजदीन कव्वाल, शेख गुलाममुहम्मद कशमीरी लालदीन, चूड़गर, मुहम्मददीन, अब्दुलकादिर, फकीराअराई, फजलदीन कसाब, सराजदीन ।
हिन्दी अनुवाद । सतखतरे में अपने शिष्यों के पास मेरा आना हुआ। आपकी प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि सुनकर मुझे भी आप से मिलने की इच्छा हुई । मिलने पर परस्पर वार्तालाप होने से शुद्ध वस्त्र पहनने के लिये आपके उपदेशने मुझपर बड़ा प्रभाव डाला जिससे मैंने उसी समय स्वदेशी वस्त्र मंगाकर पहन लिया। जो वास्तव में उचित ही था । अतः मैंने अपने शिष्योंको जो सनखतरा वासी हैं इकट्ठा करके इस विषय में शिक्षा दी है जिसको सबने स्वीकार कर लिया है और यह प्रतिज्ञा की है कि हम व्याह शादियों तथा अन्य सांसारिक अथवा धार्मिक कृत्यों के समय कभी अपवित्र, चरबी की पान से बना हुआ, अथवा ऐसी मशीन का बना हुआ जो चरबी से चलती हे और हमारे धर्म को हानि करने वाला हो कदापि ऐसा वस्त्र उपयोग में न लावेंगे। हम स्वदेशी पवित्र वस्त्र ही प्रतिदिन पहनने के अतिरिक्त अन्य कृत्योंमें भी उपयोग में लावेंगे । एवं मैं जहां जहां अपने शिष्योंके पास जाऊंगा उनको यही शिक्षा करूंगा आशा है कि मेरे कुल शिष्य मेरी आज्ञा को मानेंगे और अपवित्र वस्तुयें अपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com