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( १५४ ) लोगों में उत्साह खूब बढ़ा हुआ था। बाहर से गुजरांवाला, नारोवाल, सनखतरा आदि शहरों के भी बहुतसे श्रावक आये थे। नगर में उत्सवकी धूम मची हुई थी। उसरोज आपने भगवान् महावीरस्वामी के जीवन का वर्णन करते हुए बड़ा मारके का समयोपयोगी उपदेश दिया । जनताने खूब आनन्द लूटा । इस अवसर पर सनखतरा निवासी लाला परमानन्दजी दुगड़ तथा नारोवालके लाला पंजूशाहने लड्डुओं की प्रभावना की; और गुजरांवाले के सजनों ने बदामों की प्रभावना की।
चैऋशुक्ला १५ के रोज नारोवाल से श्री सिद्धाचलजीका पट मंगवाकर बांधा गया; और सभी श्रावकों के साथ मिलकर आपने चैत्यवन्दन किया। यहांपर इतना उल्लेख करदेना भी आवश्यक समझा जाता है कि आपके सदुपदेश से यहांके कई स्थानकवासी श्रावक-श्राविकाओंने आपसे वासक्षेप ग्रहण करनेका सौभाग्य प्राप्त किया। जिनमें ला. नत्थूरामजी के सुपुत्र ला. हरजसरायजी, ला. लाभामलजी, ला. ख़ज़ानची लालजी, ला. अमरनाथजी, ला. सरदारी लालजी, ला. मेलामलजी चौधरी, ला. तिलकचंदजी, ला. मुलखराजजी, ला. लक्ष्मीचन्दजी, ला. विश्नलालजी, ला. देवी दयालजी के पुत्र सरदारीलालजी तथा ला. गोपालशाहकी धर्मपत्नी केसरदेवी, ला. लद्धेशाहकी धर्मपत्नी और ला. पालामलकी
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