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तात्पर्य यह है कि उक्त संस्थाकी गुजरांवाला में स्थापना हुई और उसकी प्रथम बैठकमें ही ओसवाल और खंडेलवालका जो भेदभाव था, उसको मिटा दिया गया । व्याह शादी आदि में होनेवाली कई एक फिजूल खर्चियों को बन्द करने के नियम बनाये गये । एवं इस सभा का वार्षिक अधिवेशन हरएक शहरमें होकर पंजाब के समस्त जैनोंका संगठन और सामाजिक दोषोंको दूर करनेका भगीरथ प्रयत्न, आपने अपने सारे जीवनमें जारी रखा। उसीका यह फल है कि श्री आत्मानन्द जैन महासभा नामकी संस्था आज अपनी उन्नति के यौवन पर आ रही है ।
यहांसे विहार करके पपनाखा, किलादीदार सिंह और रामनगर तथा खानगाह डोगरां आदि में धर्मोपदेश देते हुए आप लाहौर में पधारे ।
इन नगरोंमें आपके पधारनेसे बहुत लाभ हुआ । सेंकड़ों जैनेतर लोगोंने आपके उपदेशसे मांस-मदिराका परित्याग किया । रामनगर में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथकी यात्रा और
* सं० १९४८ की सालमें शहर अमृतसर में श्री अरनाथ स्वामि जी के प्रतिष्टः महोत्सव के समय स्वर्गीय गुरुदेव १००८ श्रीमद्विजयानंदसूरि ( आत्माराम ) जी महाराज के सदुपदेश से पंजाब में श्री संघने कितनेक अनावश्यक खर्चेको बंद किया था । उसकी ही प्रगतिरूप यह महासभा कायम की गयी । जिसका १९९० में १३ वां सालाना जलसा हुशियारपुर में आनंद पूर्वक व्यतीत हुआ हैं ।
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