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( ८६ ) अनेक उत्तमोत्तम भजन और मुनि श्री विबुधविजयजी और मुनि श्री विचक्षणविजयजी तथा मुनि समुद्रविजयजी के व्या ख्यान हुए। तदनंतर आपका भाषण इतना प्रभाव पूर्ण हुआ कि जिसका वर्णन लेखनीकी शक्तिसे बाहर है। वि. सं. १९७८ का आपका चर्तुमास गुजरांवालामें हुआ।
॥ श्री आत्मानन्द जैन महासभा पंजाबकी
स्थापना ॥ " संसार की समर स्थली में धीरता धारण करो,
चलते हुए निज इष्ट पथ में संकटों से मत डरो, जीते हुए भी मृतक सम रहकर न केवल दिन भरो, वर वीर बन कर आप अपनी विघ्न बाधायें हरो॥
जैन समाजमें अनेक प्रकारके बुरे रिवाजों और फिजूल खचेको देखकर एकदम हरएक समाज-सुधारक के दिलमें दुःख हुए बिना नहीं रहसकता । जब तक इनको दूर करनेका प्रयोग न किया जाय वहाँ तक समाज कभी उन्नत दशाको प्राप्त नहीं हो सकता। इसी खयालसे आपने " श्री आत्मानन्द जैनमहासभा-पंजाब" की नींव डाली । आपने सामाजिक कुरीतियोंसे होनेवाले दुष्परिणामों का फोटो वहाँके श्रीसंघके सामने बैंच कर रखा और बाहरसे आये हुए. भाइयोंको भी उनके दूर करने का उपदेश दिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com