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अर्थ-जगत् के पूज्य हे गुरु भगवन् ! आपका भक्तिरस संसार रूप रोग का नाश करने वाला और शान्ति एवं कल्याण का देने वाला है। इसके प्रभाव से भय और शोक का शमन हो जाता है एवं यश तथा हर्ष की प्राप्ति होती है। यह संसार के दुःख का हरण करने वाला है एवं भक्त की कामना को पूरी करता है। जगतारक ! तापितशान्तिकर ! शरणागतपालक ! शान्तिगुरो । कमलोपम कोमल पादयुगे सकलार्पितभक्तजनाः प्रमुदा ॥४॥
अर्थ--विश्वतारक, संतप्त प्राणियों को शान्ति देने वाला, शरणागत की रक्षा करने वाले, हे शान्ति गुरुदेव ! आपके कमल जैसे सुकोमल चरणों में भक्त लोग आनन्दपूर्वक अपना सर्वस्व अर्पण करते हैं।
वसंततिलकावृत्तम अज्ञानतामसमपाकरणे प्रदीप !
संसारपारकरणे मम पोततुल्यः । भक्तेप्सितप्रददने सुरवृक्ष ! नौमि
सूरीश ! शान्तिगुरुदेव, तवांघिन ॥५॥ अर्थ-अज्ञानान्धकार को दूर करने में दीपक स्वरूप हे गुरुदेव ! संसार से मुझे पार पहुंचाने के लिये आप जहाज़ समान हैं। भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने में कल्प वृक्ष रूप
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