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श्री धर्मविजयजी भगवान् का जीवनचरित्र अद्भुत है । उसका अति संक्षिप्त वर्णन यहाँ दिया जाता है-
जोधपुर के पास जसवन्तपुरा परगने में मांडोली नामक एक गाँव है । वहाँ एक रायकाजी दरजोजी करके रहते थे । दरजोजी के कोलोजी नामक एक इकलौता पुत्र था । कोलोजी का जन्म संवत् १८४८ की प्राषाढ़ सुदी १५ के शुभ दिन हुआ था । दरजोजी के देहावसान के पश्चात् कुटुम्ब - निर्वाह का भार कोलोजी के सिर आा पड़ा । बचपन से ही कोलोजी को ईश्वर एवं भगवद्भक्ति में अटल श्रद्धा थी । उनके जीवन - निर्वाह का साधन पशुओंों के पालन-पोषण पर निर्भर था । एक बार मारवाड़ में बड़ा भयंकर दुष्काल पड़ा । अन्नपानी और पशुओं के लिये घास मिलना दुष्कर हो गया । ऐसे कठिन समय में वे कुटुम्ब को साथ लेकर देशाटन के लिये निकल पड़े । मार्ग में बीमारी फैल जाने से कितने ही पशु मर गये । परिवार के लोगों में से भी केवल कोलोजी और वेलजी नामक उनका एक डेढ़ साल का बालक जीते रहे । घूमते फिरते वे पूना के समीप चोक नामक गाँव में आये । वहाँ मारवाड़ से आये हुए, थूल गाँव के निवासी जसाजी नामक एक जैन- गृहस्थ रहते थे । कोलोजी ने अपने पुत्र के साथ उनके यहाँ पशुओं की सार-संभाल के लिये नौकरी कर ली । कोलोजी की अपूर्व भक्ति-भावना देखकर सेठ ने उन्हें पंच परमेष्ठी मंत्र सिखाया । कोलोजी अधिक समय ध्यान में ही तल्लीन रहते थे ।
एक बार उनके पुत्र वेलजी को जंगल में सर्प ने डस
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