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बात को मैंने महत्व नहीं दिया था, जव बातें कर हम सब उठे तो गुरुदेव ने मुझे कहा कि--महानुभाव तुम भी जाते हो, मैं इस संकेत से पुनः बैठ गया और एक आदमी दरवाजे के पास बैठा था उसने किंवाड बंद कर दिये, आपने फरमाया महाराणा सहाब से मिल सकते हो, मैंने कहा अर्ज करा सकता हूं आप ने क्यों पूछा? आपने कहा इस समय धर्म का कार्य कराने का समय है, मैंने कहा धर्म के कार्य का समय तो जब चाहें कराने का होता है इस समय ही क्यों ? आपने फरमाया इतना नहीं पूछना चाहिए, मैंने कहा आपने फरमाया तो स्पष्टीकरण होना चाहिए, उत्तर दिया कि बात किसी को कहने की नहीं है, मैंने कहा हमारे यहां हाकिम साहब शुगनलालजी साहब मेहता हैं, उनके सिवाय किसी को नहीं कहूंगा तो फरमाया कि महाराणा साहब का आयुष्य नजीक आगया है । (उस समय महाराणाधिराज श्री फतहसिंहजी विद्यमान थे,) मैंने कहा नजीक की मयाद क्या आज और छ: महिना तो उत्तर दिया कि ज्यादा से ज्यादा आठ दिन, मैं स्तब्ध हो गया, फिर पूछा कि समाधी मरण होगा या पंडित मरण तो आप ने कहा कष्ट मय होगा, बहुत क्षोभ हुआ, उदासी आई, फिर ध्यान विषय की चर्चा कर मैं धर्मशाला में आगया, जब में आबूरोड़ स्टेशन पर पहुँचो तो मेवाड की और से यात्रा माहिती देने वाले कर्मचारी मिले उनको पूछने पर पता लगा कि श्रीमान् महाराणा साहब उदयपुर बिराजते हैं। जब मैं अजमेर पहुंचा तो लालाजी प्यारेलालजी साहब से पता लगा कि जयसमुद्र बिराजते हैं, चित्तौड़ पहुँच ने पर श्रीमान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com