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शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, वह दृष्टि में नहीं पाता, जल में शीतलता का गुण है, परन्तु अमुक प्रयोग मिश्रण से विद्यत उत्पन्न होती है और वरालका बल अपरम्पार होता है, वस्तुएँ पृथक-पृथक हो तो शक्तियां गौण रहती है जो शक्ति बल मिश्रण से पैदा होती है वही वेगवान होती है, इस न्याय से देह इन्द्रियों के योग से मन होता है, और यह इतना वेगवान होता है कि पल विपल में विश्व के किसी विभाग पर पहुँच जाता है, मन पर मनोनिग्रह करने के लिये, अध्यात्म कल्पद्रुम में सहस्रावधानी श्री सुन्दरसूरिजी महाराज ने वर्णन किया है, और कल्याणमंदिर स्तोत्र के कर्ता ने भी कह दिया कि "मन एवं मनुष्याणं कारणं बंध मोक्षयो" मन बंध और मोक्षका कारण होता है। योग के चोरासी प्रासन बताये हैं, जिनमें से जैसा जिसको अनुकुल-सुविधा जनक मालूम हो उसके द्वारा सिद्धि प्राप्त करें, प्रासन सिद्ध का अर्थ यह है कि अमुक समय तक सुख पूर्वक ध्यानस्थ रह सके पतंजल राजयोग" में प्राणायाम का वर्णन करते कहा है कि प्राणायाम के द्वारा जिस मन का मैल धुल गया हो वही मन ब्रह्म में स्थिर होता है, प्राणायाम के अनेक भेद-भेदानुभेद हैं। प्राणायाम करने से पहले नाड़ी शुद्धि करनी चाहिए जिसके भी अनेक भेद योग "प्रयोग हैं, प्राणायाम से शक्ति पाती है, अंगुठे से दाहिना नसकोरा (नाकका) दबाकर बांयी ओर के नसकोरे से धीमे धीमे यथाशक्ति वायु सञ्चार करो, और बगैर विश्राम किये बांये नासिका दबाकर दाहिनी नासिका से वायु निकालो।
इस तरह से अभ्यास बढ़ाते रहो, इस तरह करते करते यदि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com