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खते हैं कि हिन्दुस्तान भरमें यह मन्दिर सर्वोत्तम है और ताजमहलके सिवाय कोई दूसरा स्थान इसकी समानता नहीं करसकता इसके पासही लूणवसही नामक नेमिनाथका मन्दिर है जिसको लोग वस्तुपाल तेजपालका मन्दिर कहते हैं, यह मन्दिर प्रसिद्ध मत्री वस्तुपालके छोटे भाई तेजपालने अपने पुत्र लूणसिंह तथा अपनी स्त्री अनुपम देवीके कल्याणके निमित्त करोडों रुपये लगाकर वि० सं० १२८७ ( ई० स० १२३१ ) में बनवाया था. यही एक दूसरा मन्दिर है जो कारीगरीमें उपरोक्त विमलशाहके मन्दिरकी समता करसकता है इसके विषयमें भारतीय शिल्प सम्बन्ध विषयों के प्रसिद्ध लेखक फर्गसन साहबने अपनी पिकचरस इलस्टेशन्स आफ एन्श्यंट आकिटेक वर इन् हिन्दुस्तान नामकी पुस्तकमें लिखा है कि इस मन्दिरमें जो संगमर्मरका बना हुआ है अत्यन्त परिश्रम सहन करनेवाली हिन्दुओंकी टांकीसे फीते जैसी बारीकीके साथ ऐसी मनोहर आकृतियां बनाई गई हैं कि उनकी नकल कागजपर बनानेको कितनेही समय तथा परिश्रमसेभी मैं शक्तिवान् नहीं हो सकता यहांके गुंबजकी कारी
१ वस्तुपाल और उसका भाई तेजपाल-गुजरातकी राजधानी अणहिल्लवाडे ( पाटण) के रहनेवाले महाजन अश्वराज ( आसराज ) के पुत्र और गुजरातके धोलका प्रदेशके सोलंकी (बघेल) राणा वीरधवलके मंत्री थे, जैन धर्मस्थानों के निमित्त उनके समान द्रव्य खर्च करनेवाला दूसरा कोई पुरुष नहीं हुआ.
२ यहांके शिलालेखमें वि० सं० १२८७ दियाहै परंतु तीर्थ कल्पमें १२८८ लिखा है.
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