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जीव-विज्ञान
समनस्काऽमनस्काः ।। 11|| अर्थ संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं। समनस्क-सैनी-मन सहित जीव, अमनस्क-असैनी-मन रहित जीव।
आचार्य संसारी जीवों के बारे में बताते हुए कहते हैं-संसारी जीव दो प्रकार के है। समनस्क और अमनस्क। समनस्क जीवों को ही हम संज्ञी जीव कहते हैं। जो मन से सहित हों उन्हें समनस्क कहते हैं और जो मन से रहित हों उन्हें अमनस्क कहते हैं। यहाँ पर जीव विज्ञान के बारे में समझ लेना चाहिए कि ऐसे भी कुछ जीव हैं जो अमनस्क हैं, जिनके पास मन नहीं है। मन नहीं होने का मतलब विचारात्मक परिणति का नहीं होना। यहाँ दो चीजें हो गई-एक विचारात्मक परिणति और दूसरी भावात्मक परिणति। ये दोनों चीजें अलग-अलग हैं। भावात्मक परिणति कौन-सी है?जो पिछले सूत्रों में त्रेपन भाव बताए गए थे वह भावात्मक परिणति कहलाएगी। विचारात्मक परिणति कहाँ से आएगी? तो वह उत्पन्न होगी मन में। जिनके मन होगा उन्हीं के विचार होगा। यह इतनी सूक्ष्म साइंस है कि कभी भी जो आधुनिक साइंस है वह इस चीज को समझ नहीं सकती। विचारों और भावों में भी अंतर होता है यह संसार की कोई साइंस नहीं समझा सकती। इसलिए कई लोग जिनमें मन नहीं होता है ऐसी प्रकार की सिद्धि कर देते हैं, उन्हें कुछ ऐसी क्रियाएं देखने में आ जाती हैं जिसके कारण उन्हें ऐसा लगता है कि इसमें भी कुछ ऐसी क्रियाएं हो रही हैं जो मन वालों में होती है। उसे आगे थोड़ा सा बताया जाएगा। लेकिन अभी हमें समझना है विचारात्मक परिणति और भावात्मक परिणति के बारे में। जो मन से रहित जीव हैं उनमें विचारात्मक परिणति नहीं होगी। विचार क्या कहलाता है? हमने कहा आपने सुना और आपने उसके बारे में कुछ विचार किया यह सही है और यह गलत है। यह सब कुछ विचारों से होता है। इसे मन की वैचारिक परिणति कहते हैं। यह भावात्मक परिणति नहीं है। भावात्मक परिणति कुछ अलग है।
कुछ लोगों का प्रश्न रहता है कि भाव क्या हैं? विचार क्या है? बुद्धि क्या है? तो भावों में और मन की वैचारिक परिणति में अंतर होता है। यह आपको इन्हीं सूत्रों को पढ़कर समझ आएगा। भावों के बारे में आचार्य कहते हैं-भाव वह है जो आपमें कर्म के उदय से चल रहे हैं। जैसे-औदयिक भाव आप महसूस कर रहे हैं कि आप पुरुष हैं, स्त्री हैं, मनुष्य हैं। यह क्या है? यह भावात्मक परिणति है। अगर आपमें कषाय का भाव आया तो यह आपके कषाय की औदयिक भावात्मक परिणति हैं। ज्ञान आपके अंदर काम कर रहा है तो यह आपके क्षयोपशम ज्ञान की भावात्मक परिणति है। आपमें दान लाभादि अनेक प्रकार की लब्धियाँ पड़ी हैं, आपको अपनी आत्मा में शक्ति महसूस हो रही है। ये सभी आपकी भावात्मक परिणतियाँ हैं। ये वैचारिक परिणतियाँ नहीं है। वैचारिक परिणतियाँ अलग हैं। वैचारिक परिणतियाँ मन वाले जीवों में ही होगी।
प्रश्न उठता है कि बिना मन वाले जीवों में क्या होगा? उनमें विचार नहीं होगा बाकी सब भाव उनमें होंगे। ये जितने भी भाव बताए गए हैं ये भाव तो उनमें होंगे लेकिन विचार नहीं होंगे। विचार से
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