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जीव-विज्ञान
आप में प्रत्येक समय दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग चलता रहता है। यह इतना तेज चलता है कि आप उसको पकड़ नहीं पाते कि किस समय हमारा दर्शनोपयोग हो गया और उस दर्शनोपयोग ने हमें कब शांति दे दी, हमें पकड़ में नहीं आ पाता। क्योंकि ज्ञान आपका तेज दौड़ता है। ज्ञान वस्तुओं के बाहरी रूप को ग्रहण करता है। उस ज्ञान के कारण यह दर्शनोपयोग अपना काम भी कर लेगा और आपको पता भी नहीं चलेगा। उस समय जो आत्मा को आराम मिलता है वह भी आपके अनुभव में नहीं आएगा। आत्मा ने तो अपनी व्यवस्था बनाकर रखी है, Relax करने की भी और कुछ Creativity करने की भी। दोनों ही प्रकार की आत्मा के अंदर स्थिति है। दर्शनोपयोग से वह प्रत्येक अतमुहूर्त में Relax कर लेती है और ज्ञानोपयोग से वह कुछ विशेष को भी जानती रहती है। फिर दर्शनोपयोग से वह सामान्य हो जाएगी, फिर ज्ञानोपयोग से विशेष को जानेगी। परन्तु उस आत्मा के ऊपर इतने प्रकार के भाव हावी हो गए हैं, कि ये सभी उस आत्मा के ज्ञानोपयोग को प्रभावित करते हैं। आत्मा के ज्ञानोपयोग के ऊपर ही दबाव डालते हैं। जब आत्मा के इस उपयोग पर दबाव बढ़ जाता है तो फिर उसका ज्ञान धीरे-धीरे दब जाता है। ज्ञान जब दब जाएगा, उभर नहीं पाएगा तो उसके लिए अनेक प्रकार की मानसिक बीमारियाँ हो जाएंगी। Depression का मतलब भी यही होता है। ज्ञान Deeplypressure में चला गया और depression हो गया। ज्ञानोपयोग के ऊपर इन भावों का दबाव बढ़ गया, ज्ञान उसे सम्भाल नहीं पाया, क्योंकि कर्मों ने अनेक प्रकार के अभाव उसमें उत्पन्न कर दिए।
दर्शनोपयोग बहुत अच्छा होता है उसको किसी से मतलब भी नहीं होता है। उसको तो वह व्यक्ति ही समझ सकता है जो यह समझे कि ज्ञानोपयोग क्या काम कर रहा है और दर्शनोपयोग क्या काम कर रहा है? लोग केवल पढ़ लेते हैं और पढ़कर अपनी बुद्धि में एक वजन और पैदा कर लेते हैं। अर्थात् ज्ञान होता है, इतने प्रकार का ज्ञान होता है इससे और एक वजन पैदा कर लेते हैं। जबकि ये सभी सूत्र हमें बड़ा हल्का बनाते हैं। आपको बाहर की किसी भी प्रकार की टेंशन है तो इस प्रकार के सूत्रों को पढ़ो तो एक टेंशन इससे कम हो जाएगी और यदि इससे लोग टेंशन करने लगें तो फिर उसका कोई उपाय ही नहीं है।
आचार्यों ने कहा है-अपने दर्शनोपयोग पर भी दृष्टि डालो वही तुम्हें भीतर से शांति देगा और कभी-कभी चीजों को बिना ध्यान केन्द्रित किए भी देखा करो। जैसे-मैं केवल एक दृष्टा हूँ केवल दर्शनोपयोग के माध्यम से देखा करो। आपमें दर्शनोपयोग की प्रवृत्ति बढ़ेगी तो आपकी आत्मा को भीतर से बहुत आराम मिलेगा। ज्ञानोपयोग की प्रवृत्ति अगर बढ़ेगी तो आपके अंदर उतावलापन बढ़ेगा। इन दोनों उपयोगों में से हम सबसे अधिक उपयोग ज्ञानोपयोग का करते हैं, दर्शनोपयोग का तो करते ही नहीं है। दर्शनोपयोग तो क्रमशः अपना कार्य करता रहता है। यदि हम अपना उपयोग उसके ऊपर लगाएं तो हमें बड़ी शांति मिल सकती है। हमारे पास सभी सुविधाएं हैं, सभी प्रकार के Function आत्मा में कार्य कर रहे हैं, परन्तु उनको व्यस्थित रूप से कार्य कराते रहना, यह भी आत्मा का पुरुषार्थ है। इन दोनों उपयोगों में दर्शनोपयोग में कोई भ्रान्ति नहीं है, ज्ञान में ही सभी प्रकार की
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