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जीव-विज्ञान
उपयोग हैं वे सभी छटते जाएंगे। जितने भी कर्म से उत्पन्न होने वाले भाव हैं वे भी इन उपयोगों को ही प्रभावित करते हैं।
आपने इक्कीस औदयिक भाव पढ़े हैं या सभी मिलाकर त्रेपन भाव पढ़े हैं। ये सब भी ज्ञान पर ही अपना प्रभाव डालेंगे। ज्ञानोपयोग के ऊपर ही अपने प्रभाव से ज्ञान को ही अपनी क्रिया बना करके, ज्ञान के माध्यम से ही आत्मा का अनुभव करायेंगे। अर्थात् इन भावों का अलग से अपना उपयोग नहीं होगा। आत्मा के अनन्त गुण हैं और आत्मा के वे अनन्त गुण अपनी-अपनी क्रियाएँ करने लग जाएँ तो आत्मा पागल हो जाएगी। ज्ञानोपयोग कहेगा-'तू ज्ञान कर', सम्यक्त्व कहेगा-'तू श्रद्धान कर', सुख कहेगा-'तू सुख कर', इस तरह से आत्मा तो पागल हो जाएगा। वह एक समय में क्या-क्या करेगा। आचार्य कहते हैं कि एक समय में इन दोनों में से कोई एक ही उपयोग होगा। ज्ञानोपयोग से वस्तु को विशेष रूप में जानना और दर्शनोपयोग में वस्तु को सामान्य रूप में जानना। जैसे-हम कह सकते हैं कि जब हम किसी वस्तु को जानने का प्रयास करते हैं तो उस पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। हमने किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित किया तो वह ज्ञानोपयोग हुआ और जब हम उसको सामान्य रूप से देख रहे हैं, ध्यान केन्द्रित नहीं कर रहे हैं तो वह दर्शनोपयोग हो गया। दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग में प्रत्येक अतमुहूर्त-अतमुहूर्त में अपने ही स्वभाव से परिवर्तित होता रहता है। देखना और जानना, इसमें पहले देखने की क्रिया होगी फिर जानने की क्रिया होगी। देखने की क्रिया में उपयोग को बहुत आराम मिलता है जिसे दर्शनोपयोग कहते हैं, उसमें ध्यान केन्द्रित नहीं करना पड़ता और ज्ञानोपयोग में ध्यान केन्द्रित करना पड़ता है।
आप सामान्य रूप में देखें कि एक हाल है, लोग बैठे हुए हैं आपको कोई चिंता नहीं होगी। आपको किसी पर ध्यान केन्द्रित नहीं करना है तो आप सामान्य रूप से देखेंगे, आपको किसी भी प्रकार से कोई जोर नहीं डालना पड़ेगा। यह हो गया आपका दर्शनोपयोग । जब आपने किसी व्यक्ति विशेष पर ध्यान केन्द्रित किया तो आपको सोचना पड़ेगा कि क्या यह वही है जिसे मैं सोच रहा हूँ?कोई अन्य तो नहीं बैठा हुआ है जो उसी शक्ल का या उसके जैसी ड्रेस पहने हुए हो। जब आपका उस पर ध्यान केन्द्रित हुआ तो यह आपका ज्ञानोपयोग हुआ।
आचार्य कहते हैं जब हममें दर्शनोपयोग आता है तो बहुत शांति देता है। अगर हम आध्यात्मिक दृष्टि से इसको समझते हैं तो जब दर्शनोपयोग आता है वह आत्मा में किसी भी प्रकार की टेंशन नहीं देता है। सामान्य रूप से किसी को देखने में कोई टेंशन नहीं होगी और जैसे ही आपने उस पर ध्यान केन्द्रित किया तो वह विशेष हो गया, विशेष हुआ तो ज्ञान हुआ, ज्ञान हुआ तो ज्ञान ने उस विशेष को ग्रहण कर लिया और फिर ज्ञान ने ही उसके अंदर अनेक प्रकार की परिणतियाँ शुरू कर दी। 'यह अच्छा है', 'यह बुरा है', ये सब विचार उस ज्ञान के ऊपर प्रभाव डालने लगे और वे सब मोह, राग, द्वेष की परिणतियाँ कहाँ पर प्रभाव डालेंगी?ये सभी ज्ञान पर प्रभाव डालेंगी। टेंशन किसको होगा?ज्ञान को होगा।
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