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श्री जैन इतिहास ज्ञानभानुकिरण नं. २४ श्रीमद्रत्नप्रभसूरीश्वरपादपद्मेभ्यो नमः
खरतरमतोत्पत्ति-भाग तीसरा
'खरतरमतोत्पत्ति भाग पहले-दूसरे' में प्रायः खरतरानुयायियों के प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध कर बतलाया है कि खरतरमत की उत्पत्ति न तो जिनेश्वरसूरि द्वारा हुई है और न अभयदेवसूरि ही खरतर थे। अब तीसरे भाग में यह बतलाया जायेगा कि खरतरमत की उत्पत्ति किस समय, किस कारण और किस पुरुष द्वारा हुई थी।
खरतरमत की नींव डालनेवाला मूल पुरुष था जिनवल्लभसूरि, अतः पहले जिनवल्लभसूरि का संक्षिप्त परिचय करवा देना बहुत जरुरी है।
जिनवल्लभ कौन था इस विषय का सबसे प्राचीन उल्लेख "गणधरसार्द्धशतक" नामक ग्रन्थ में मिलता है जिसके रचयिता जिनदत्तसूरि हैं और उस ग्रन्थ पर जिनपतिसूरि के शिष्य सुमति गणि ने बृहद्वृत्ति रची हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में जिनवल्लभ के विषय में लिखा है कि :
"इतश्च तस्मिन् समये आसिकाभिधानदुर्गवासी कूर्चपुरीय जिनेश्वराचार्य आसीत्, तत्र ये श्रावकपुत्रास्ते सर्वेऽपि तस्य मठे पठन्ति, तत्र च जिनवल्लभ नामा श्रावकपुत्रोऽस्ति, तस्य जनको दिवंगतः, तं जननी प्रतिपालयति, पाठयोग्यश्चासौ प्रक्षिप्तः तया तत्र मठे पठितुं... ततस्तं द्राक्षाखजूराक्षोटखण्डमण्डकमोदकादिदानपुरस्सरं वशीकृत्य तन्मातरं मधुरवचनैः संबोधयामास, यदुत एष त्वदीयपुत्रोऽत्यन्तप्राज्ञः मूर्तिमान् सात्त्विकः, किं बहुना ?, आचार्यपदयोग्योऽस्ति, तदेनमस्मभ्यं प्रयच्छ, एषा तावकीना देवकुलिका अन्येषां च निस्तारको भविष्यतीत्यत्रार्थे नान्यथा किंचिद्वक्तव्यमित्यभिधाय द्रम्मशतपंचकं तस्या हस्ते प्रक्षिप्य क्षिप्रं दिदीक्षे, (गणधर सार्द्धशतक)
प्र. प., पृष्ठ २३१
१. जिनदत्तसूरि का स्वर्गवास वि. सं. १२११ में हुआ, जिन्होंने गणधर सार्द्धशतक ग्रन्थ
की रचना की और वि. सं. १२२३ में जिनपतिसूरि को सूरि पद मिला और आपके शिष्य सुमति गणि ने गणधर सार्द्धशतक पर बृहद्वृत्ति रची, अतः मूलग्रन्थ और वृत्ति का समय बिलकुल समीप का समय है।