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३. कई कहते हैं कि शास्त्रार्थ चैत्यवास वसतिवास का था।
४. कई खरतर कहते हैं कि शास्त्रार्थ साध्वाचार का था। ५. जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ का समय
१. कई खरतर जिनेश्वरसूरि के शास्त्रार्थ का समय वि. सं. १०२४ का बतलाते हैं।
२. कई खरतर शास्त्रार्थ का समय वि. सं. १०८० का बतलाते हैं। ३. कई खरतर शास्त्रार्थ का समय वर्धमान के स्वर्गवास के बाद का बतलाते हैं।
४. कई खरतर शास्त्रार्थ का समय आबू के मंदिरों की प्रतिष्ठा (१०८८) के बाद का बतलाते हैं।२।। ६. जिनेश्वरसूरि को बिरुद
१. कई खरतर कहते हैं कि राजा ने खरतर बिरुद दिया।३ २. कई कहते हैं कि बिरुद तो 'खरा' दिया था पर बाद में खरतर हो गये। ३. कई कहते हैं कि खरा रहने वाले खरतर तब हार जाने वाले को कँवला
कहा।
४. कई कहते हैं कि हारने वालों को कँवला नहीं पर जब राजा ने खरा कहा तब जिनेश्वरसूरि ने कहा कि हम कोमल हैं। १. सूराचार्यैः वसतिवास प्रतिषेधकं जिनगृहवाससमर्थकं स्वकपोलकल्पितशास्त्रप्रमाणं दर्शितम्... वसतिवासप्रदर्शकं जिनगृह-निवास-निषेधकं च अनेक प्रमाण संदर्भ दर्शयित्वा ।
'षट्स्थानिक प्रकरण प्रस्तावना, पृष्ठ २' २. साध्वाचार पत्राणि मुक्तानि, तदानीं गुरुभिरुक्तम् ।
ख. प., पृष्ठ २२ नोट - अर्वाचीन खरतरों ने यह बात केवल मनःकल्पना से घड़ निकाली है जो में आगे चलकर इसी लेख में साबित कर दूंगा। शास्त्रार्थ के समय के लिये नं. १, २, ३, ४ के प्रमाण आगे चलकर इसी किताब में
दिये गये हैं। अतः पाठक वहाँ से देख लें। ३. दुर्लभ राज सभायां ८४ मठपतीन् जित्वा प्राप्त-खरतर-बिरुदः।
ख. प., पृष्ठ १० ४. जिनेश्वरसूरिमुद्दिश्य 'अतिखराः'
ख. प., पृष्ठ २२ ५. ततः खरतरबिरुदं लब्धम् । तथा चैत्यवासिनो हि पराजय प्रापणात् 'कँवला'
"ख. प., पृष्ठ २२" ६. यूयं 'खरतराः इति सत्यवादिनः । गुरुभिरुक्तमेते कोमलाः इति ।'