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(४) उपकेशपुर में क्षत्रिय आदि राजपुत्रों को जैन बनाने का समय विक्रम पूर्व ४०० वर्ष अर्थात् वीरात् ७० वर्ष का समय था।
(५) उपकेशपुर में नूतन जैन बनानेवाले वे ही रत्नप्रभसूरि हैं जो प्रभु पार्श्वनाथ के छटे पट्टधर भगवान् महावीर के पश्चात् ७० वें वर्ष हुए और उन्होंने क्षत्रियादि नूतन जैनों का न तो ओसवाल नाम संस्करण किया था और न वे १५०० वर्ष ओसवाल ही कहलाये थे। हां, वे लोग कारण पाकर उपकेशपुर को त्याग कर अन्य स्थानों में जा बसने के कारण उपकेशी एवं उपकेशवंशी जरुर कहलाए थे। बाद विक्रम की दशवीं ग्यारहवीं शताब्दी में उपकेशपुर का अपभ्रंश ओसियां हुआ। तब से उपकेशवंशी लोग ओसवालों के नाम से पुकारे जाने लगे। यही कारण है कि ओसवालों की जितनी जातिएं हैं और उन्होंने जो मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाने के शिलालेख लिखाये हैं उन सब में प्रायः प्रत्येक जाति के आदि में उएश, उकेश और उपकेश वंश का प्रयोग हुआ है। और ऐसे हजारों शिलालेख आज भी विद्यमान हैं। जरा पक्षपात का चश्मा आंखों से नीचे उतार शान्त चित्त से निम्नलिखित शिलालेखों को देखिये :
-: मूर्तियों पर के शिलालेख :संग्रहकर्ता-मुनि जिनविजयजी, प्राचीन जैनशिलालेख संग्रह भा. २ लेखांक | वंश और गोत्र-जातियों | लेखांक | वंश और गोत्र जातियों ३८४ | | उपकेशवंशे गणधरगोत्रे । २५९ | उपकेशवंशे दरडागोत्रे
| उपकेश ज्ञातिका करेचगोत्रे २६० उपकेशवंशे प्रामेचागोत्रे ३९९ | उपकेशवंशे कहाड़गोत्रे ३८९ उ. गुगलेचागोत्रे
उपकेशज्ञाति गदइयागोत्रे ३८८ | उ. चुंदलियागोत्रे उपकेशज्ञाति श्रीश्रीमाल ३९१ | उ. भोगरगोत्रे चंडालियागोत्रे
उ. रायभंडारीगोत्रे ४१३ | उपकेशज्ञाति लोढागोत्रे २९५ | उपकेशवंशीय वृद्धसज्जनिया
३८५
४१५
३६६
-: मूर्तियों पर के शिलालेख :संग्रहकर्ता-श्रीमान् बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर, जैनलेखसंग्रह भा. १-२-३ लेखांक वंश और गोत्र-जातियों | लेखांक वंश और गोत्र जातियों
४ | उपकेशवंशे जाणेचागोत्रे । ७५ उकेशवंशे गांधीगोत्रे